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६० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जैन नैतिकदृष्टि बिन्दु स्वहित के साथसाथ लोकहित को भी लेकर चलता है। गृहस्थ जीवन में तो लोकनीति को स्वहित से अधिक ऊँचा स्थान प्राप्त हुआ है ।
भगवान के उपदेशों में निहित इसी समन्वयात्मक बिन्दु का प्रसारीकरण एवं पुष्पन-पल्लवन बाद के आचार्यों द्वारा हुआ।
आचार्य हरिभद्रकृत धर्मबिन्दु प्रकरण' और आचार्य हेमचन्द्रकृत योगशास्त्र में जो मार्गानुसारी के ३५ बोल दिये गये हैं, वे भी सद्गृहस्थ के नैतिक जीवन से सम्बन्धित हैं।
प्रवचनसारोद्धार में श्रावक के २१ गुणों में भी लगभग सभी गुण नीति से ही सम्बन्धित हैं।
इस प्रकार भगवान महावीर द्वारा निर्धारित नीति-सिद्धान्तों का लगातार विकास होता रहा, और अब भी हो रहा है। यद्यपि नीति के सिद्धान्त वही हैं, किन्तु उनमें निरन्तर युगानुकूल परिमार्जन और परिष्कार होता रहा है, यह धारा वर्तमान युग तक चली आई है। ___ महा वीर युग को नैतिक समस्यायें और भगवान द्वारा समाधान
भगवान महावीर का युग संघर्षों का युग था। उस समय आचार, दर्शन, नैतिकता, सामाजिक ऊँच-नीच, वर्ण व्यवस्था, दास-दासी प्रथा आदि अनेक प्रकार की समस्याएँ थीं। सभी वर्ग जिसमें भी समाज में उच्चता प्राप्त ब्राह्मणवर्ण अपने ही स्वार्थो में लीन था, मानवता पद-दलित हो रही थी, क्रूरता का बोलवाला था, नैतिकता को लोग भूल से गये थे। ऐसे कठिन समय में भगवान महावीर ने उस युग की समस्याओं को समझा, उन पर गहन चिन्तन किया और उचित समाधान दिया।
(१) नैतिकता के दो दृष्टिकोणों का उचित समाधान-उस समय ब्राह्मणों द्वारा प्रतिपादित एक ओर हिंसक यज्ञ चल रहे थे तो दूसरी ओर
१ आचार्य हरिभद्र--धर्मबिन्दु प्रकरण १ २ आचार्य हेमचन्द्र--योगशास्त्र, १/४७-५६ ३ मार्गानुसार ? के ३५ बोलों और श्रावक के २१ गुणों का नीति परक विवेचन
इसी पुस्तक में आगे किया गया है । ४ प्रवचनसारोद्धार, द्वार २३६, गाथा १३५६-१३५८
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