SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। उसमें अनेक प्रकार की सम्भावनाएं हैं। उसके कर्म प्रेरणाहीन होते हैं। नियतिवादियों के विरुद्ध अनियतिवादियों का कहना है कि संकल्प-शक्ति प्रबल इच्छा के अनुरूप कर्म नहीं करती है । जब इच्छानों में द्वन्द्व होता है तो संकल्प-- शक्ति बिना प्रेरणा के ही आकस्मिक चुनाव करती है। संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता इस पर निर्भर है कि वह प्रबल इच्छाया प्रेरणा से समीकरण न कर क्षणिक आवेग में कर्म कर लेती है। वह किसी भी इच्छा को चुन लेती है। संकल्प-शक्ति एक अज्ञात शक्ति की भाँति है। उसके कर्म तात्कालिक आवेग या क्षणिक प्रवृत्तियों से संचालित होते हैं। कर्म करने के पूर्व व्यक्ति के सम्मुख अनेक इच्छाएँ और प्रेरणाएं होती हैं। किन्तु संकल्प-शक्ति उनमें से किसी के अनुरूप कर्म करने के लिए बाध्य नहीं है। वह उनसे प्रभावित नहीं होती, उसका निर्णय आकस्मिक होता है। अतः नियतिवादियों का यह कहना कि भूत और वर्तमान के ज्ञान के आधार पर भविष्य के कर्मों के बारे में निर्णय दिया जा सकता है, सर्वथा दुस्साध्य है। स्वेच्छित कर्म किसी ऐसी वस्तु अथवा चरित्र का अनिवार्य परिणाम नहीं हैं जो कि पहले से ही वर्तमान हो। संकल्प-शक्ति जिस क्षणिक आवेग से कर्म करती है उसकी पूर्व सम्भावना मनुष्य के भीतर नहीं होती। कर्म करने के क्षण तक कोई भी ऐसी सम्भावना ज्ञात नहीं है जिससे कि व्यक्ति की इच्छा का पता चल सके । संकल्प-शक्ति का कर्म पूर्णतः एक नयी सृष्टि है। उसका कर्म स्वतन्त्र है । यहाँ पर अनियतिवादी यह स्वीकार करते हैं कि कर्म का कर्ता व्यक्ति है, किन्तु यह निर्धारित चरित्र या प्रेरणा पर निर्भर नहीं है । संकल्प-शक्ति का स्वरूप व्यक्ति के उसी क्षण के व्यक्तित्व पर निर्भर है। यह उस चरित्र पर निर्भर है जिसके स्वरूप का अभी तक निर्माण हुआ है अथवा जिसको लेकर वह उत्पन्न हुआ। संकल्प-शक्ति प्रत्येक कर्म के लिए स्वतन्त्र है। कर्मरत संकल्प-शक्ति प्रेरणा और पूर्वनिश्चित चरित्र से मुक्त है। उसका अपना एक अज्ञेय अस्तित्व है। व्यक्ति की आत्मा सजनशील है, वह प्रत्येक कर्म में संकल्प-शक्ति द्वारा नवीन रूप में प्रकट होती है। मनुष्य के कर्म पूर्ण रूप से अनिश्चित हैं। यहाँ तक कि उसके नैतिक और विचारयुक्त कर्मों के बारे में भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, भले ही उसके विगत जीवन का इतिहास ज्ञात हो। यदि जुड़वाँ भाइयों का उदाहरण लें तो अनियतिवादियों के अनुसार उनका व्यवहार किसी भी परिस्थिति में समान नहीं होगा। दोनों का व्यवहार सदैव भिन्न रहेगा। यह सम्भव हो सकता है कि जुड़वां भाइयों में से एक साधु निकल जाये और दूसरा चोर । ९०/नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy