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________________ पालन समान रूप से एक जैसी सामाजिक परिस्थितियों में हुमा हो तो वे सदैव एक ही रूप से व्यवहार करेंगे। नियतिवादियों के अनुसार उन भाइयों का व्यवहार किसी भी विशिष्ट प्रायु में भिन्न अथवा पृथक् नहीं हो सकता। वे संकल्प-शक्ति को पूर्वनिश्चित मानते हैं। व्यक्तियों के प्राचरण को उनके मूलगत स्वभाव और भूतकालीन परिस्थितियों से संचालित मानते हैं । संकल्प शक्ति की स्वतन्त्रता का निराकरण करते हुए वह मनुष्य के कर्मों को प्राकृतिक घटनाओं की भाँति समझाने का प्रयास करते हैं। उसके कर्मों में कार्य-कारण के नियम को घटित होते हुए देखते हैं। उनके अनुसार मनुष्य के विगत जीवन का "पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर (कारण को समझ) लेने से उसके कर्म (कार्य) के बारे में निश्चित रूप से भविष्यवाणी की जा सकती है। नियतिवादी मनुष्य को प्रकृति का ही अंग मानते हैं। वे व्यक्ति (प्रात्म-चेतन प्राणी) के प्राचरण और प्राकृतिक घटनाओं को एक ही नियम से संचालित होते देखते हैं। वे अपने सिद्धान्त की पुष्टि के लिए अनेक तर्क भी देते हैं। मनोविज्ञान (विशेष रूप से आचरणवाद), जीवशास्त्र, नृतत्वशास्त्र (Anthropology), शरीरशास्त्र (Physiology), जननशास्त्र (Genetics), सर्वेश्वरवाद (Pantheism), ईश्वरज्ञान आदि के ज्ञान के आधार पर वे संकल्प-शक्ति की नियतिवादिता को समझाते हैं । अधिकतर अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन करने के लिए उन्होंने इन्द्रिय संवेदनवादी (sensationalistic) · और जड़वादी दृष्टिकोण को ही अपनाया है । नियतिवादी अपने सिद्धान्त की धुन में यह भूल जाते हैं कि व्यक्ति आत्म-प्रबुद्ध प्राणी है। उसकी अनेक सम्भावनाएं हैं और वह इन सम्भावनाओं को प्राप्त करने के लिए स्वतन्त्र है। वे व्यक्ति के आचरण को भौतिक घटना की भांति देखते हैं। जिस प्रकार गणित ज्योतिष द्वारा यह बतला सकते हैं कि सूर्य और चन्द्रग्रहण कब घटित होंगे, उसी प्रकार मनुष्य के स्वभाव, वातावरण, बहिर्गत परिस्थितियों के पूर्ण ज्ञान द्वारा वे मनुष्य के भावी कर्मों के बारे में भविष्यवाणी कर सकते हैं। अतीत के जीक्न, अभ्यासों और अनुभकों का व्यक्ति की वर्तमान मानसिक स्थिति के बनाने में वैसा ही सहयोग रहता है जैसा कि उनके अनुसार किसी तरकारी के बनाने में मसालों और उसके बनाने की विधि का। अनियतिवाद-अनियतिवादियों के अनुसार संकल्प शक्ति स्वतन्त्र है। 'मनुष्य के कर्म पूर्वनिर्धारित नहीं हैं । उसके कर्मों के बारे में पहले से कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। मनुष्य का प्राचरण अनिश्चित होस संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता | Ek Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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