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________________ ओर एक पैसा इस अभिप्राय से फेंकता है कि भिखारी की आँख फूट जाय और वह भविष्य में आकर उसे दिक न करे। किन्तु दुर्भाग्यवश कृपण का निशाना चक जाता है और भिखारी बिना कष्ट के पैसा प्राप्त कर लेता है । यदि कृपण के कर्म के परिणाम को ही केवल देखें तो नैतिक दृष्टि से यह उचित नहीं होगा । कर्म का नीतिसम्मत मूल्यांकन करने के लिए उस प्रेरणा को भी समझना आवश्यक है जिसके लिए कर्म किया जाता है । इस तथ्य को सम्मुख रखते हए ग्रीन का कहना है कि प्रेरणा ध्येय के बारे में वह विचार है जिसे प्रात्मचेतन व्यक्ति अपने सम्मुख रखकर उसे प्राप्त करने का प्रयास करता है । प्रेरणा वह पर्याय है जो परिणाम अथवा उद्देश्य के लिए प्रयोग में लाया जाता है । इस अर्थ में प्रेरणा नैतिक निर्णय का विषय है। प्रेरणा और परिणाम में परम भिन्नता देखना भूल है। उद्देश्य अपने सीमित अर्थ में प्रेरणा है और प्रेरणा अपने व्यापक अर्थ में उद्देश्य है । प्रेरणा और उद्देश्य अपृथक् हैं, किन्तु साथ ही अपनी विशिष्टता रखते हैं। प्रेरणा और परिणाम एवं कर्म एक ही क्रिया के आन्तरिक और बाह्य पक्ष हैं, क्योंकि किसी विचार का मानस में प्रकट होना, उसका संकल्प करना और उसे निर्धारित करना एक ही क्रिया का आदि और अन्त है । यदि पुनः यह प्रश्न किया जाय कि नैतिक निर्णय का विषय क्या है तो कहा जा सकता है कि वह आचरण है और आचरण से अभिप्राय उसके दोनों पक्षों से-पान्तरिक और बाह्य पक्षों से है। नैतिक निर्णय विवेकसम्मत है । यह सम्पूर्ण परिस्थिति के अध्ययन के पश्चात् ही कर्मों के औचित्य-अनौचित्य को निर्धारित करता है । जहाँ तक व्यक्ति के आचरण का प्रश्न है यह उसके चरित्र का ही व्यक्त रूप है। अथवा आचरण पर निर्णय देना या चरित्र पर निर्णय देना एक ही बात है। व्यक्ति की संकल्प.. शक्ति, आत्मा और प्रेरणा भी उसके चरित्र के ही सूचक हैं । अतः नैतिक निर्णय का विषय व्यक्ति का आचरण, चरित्र, संकल्प-शक्ति, प्रात्मा और प्रेरणासभी समान रूप से हो सकते हैं, क्योंकि ये सब एक ही सत्य के रूप हैं । इनको विवादग्रस्त परिभाषाओं से मुक्त करके नैतिक निर्णय का विषय बनाया जा सकता है। ७४ | नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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