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नैतिक प्रत्यय
कर्ता, कर्म और ध्येय के नैतिक स्वरूप को समझने के लिए विभिन्न शब्दों का प्रयोग करते हैं अर्थात् उचित-अनुचित, शुभ-अशुभ, कर्तव्यं-अधिकार, सद्गुणदुर्गुण, पाप-पुण्य, स्वतन्त्रता-उत्तरदायित्व' प्रादि, जिन्हें नैतिक प्रत्यय कहते हैं; नीतिशास्त्र में वे विशिष्ट अर्थों से युक्त हैं, और नैतिक निर्णय में सहायक होते हैं। नैतिक निर्णय वे हैं जो कि स्वेच्छित कर्मों तथा उन कर्मों को करनेवाले व्यक्तियों तथा उन ध्येयों पर, जिनकी प्राप्ति के लिए व्यक्ति प्रयास करते हैं, उनके स्वरूप का मूल्यांकन करने के लिए, दिये जाते हैं। ___शुभ और उचित के प्रत्यय नैतिकता के मूलगत प्रत्यय' हैं और अन्य प्रत्यय इन्हीं के समानार्थी हैं। फिर भी यह उचित है कि हम प्रत्येक प्रत्यय के विशिष्ट अर्थ का ज्ञान प्राप्त कर लें। दैनन्दिन जीवन में इन प्रत्ययों का प्रयोग सामान्य रूप में किया जाता है क्योंकि सामान्यबोध इनमें कोई स्पष्ट भेद नहीं करता है। नीतिशास्त्र के अनुसार ध्येय के स्वरूप को समझाने के लिए शुभ और अशुभ का, व्यक्ति या वैयक्तिक चरित्रों के लिए सदगुण और दुर्गण का और स्वेच्छा. कृत कर्म के रूप को समझाने के लिए उचित और अनुचित का प्रयोग करना अधिक मान्य है। इन भिन्न विशेषणों के यह अर्थ कदापि नहीं हैं कि कर्ता, कर्म और ध्येय का मूल्यांकन करने के लिए हम भिन्न मान-दण्डों का प्रयोग करते
१. Duty-Obligation, Virtue-Vice, Merit-Demerit, Freedom___Responsibility. २. देखिए-भाग १, मध्याय ११ .
नैतिक प्रत्यय | ७५
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