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________________ बताता है कि वह केवल अपने परिवार या अपनी राजसत्ता का ही नागरिक नहीं है, वह मानव-समाज एवं वसुधैव कुटम्बकम् का भी अविच्छिन्न सदस्य है । वह परस्पर सम्बद्ध सार्वभौम सजीव विश्व-व्यवस्था का अंश है। उसका जीवन धर्मक्षेत्र है। सामाजिक कल्याण ही उसका आत्म-कल्याण है। आध्यात्मिक दर्शन को माननेवाले नीतिज्ञ विश्व को आध्यात्मिक चेतना का व्यक्त रूप मानते हैं । उनके अनुसार विविधता के मूल में एकता है । व्यक्ति सत्तात्मक रूप से एक है। जीवन का ध्येय सर्वकल्याण है । किन्तु कुछ नीतिज्ञ अपने भौतिक तत्त्वदर्शन की व्याख्या के अनुसार विश्व का निर्माण अणुओं के संघर्ष के कारण मानते हैं । इनका नैतिक सिद्धान्त केवल वैयक्तिक कल्याण का पोषक है । ये अध्यात्मवादियों की तरह व्यक्ति और समाज को एक अविच्छिन्न सत्ता के रूप में नहीं देखते । इस प्रकार विश्वविधान के विभिन्न दर्शनिक दृष्टिकोणों के अनुरूप आचरण के दो भिन्न मापदण्ड देखने को मिलते हैं। इससे सिद्ध होता है कि नीतिशास्त्र तत्त्वदर्शन के निष्कर्षों से अपने को सर्वथा मुक्त नहीं कर सकता है। नैतिक निर्णय स्वेच्छाकृत कर्म पर दिया जाता है। संकल्प की स्वतन्त्रता नीतिशास्त्र की आवश्यक मान्यता है। तत्त्वज्ञान बताता है कि संकल्प-शक्ति क्या है। उसकी स्वतन्त्रता के क्या अर्थ हैं। ईश्वर का अस्तित्व और आत्मा की अमरता भी नीतिशास्त्र की आवश्यक मान्यताएँ हैं। ईश्वर का अस्तित्व उसके सिद्धान्त को आकर्षक ही नहीं बनाता है, उसकी वास्तविकता की पुष्टि भी करता है। ईश्वर नैतिक आदर्श का प्रतीक है । आत्मा की अमरता मनुष्य को क्षणिक सुख से ऊपर उठाती है। विश्वात्मा के साथ उसके तादात्म्य पर प्रकाश डालती है । नीतिशास्त्र अपनी तीनों आवश्यक मान्यताओं के लिए तत्त्वदर्शन पर आधारित है। नीतिशास्त्र का आचरण से सम्बन्ध है। वह आचरण पर निरपेक्ष निर्णय देता है । इसके निर्णयों का रूप सार्वभौम होता है, वैयक्तिक और सापेक्ष नहीं होता है। कर्मों के औचित्य-अनौचित्य को वैयक्तिक इच्छा या विशिष्ट परिस्थिति के आधार पर निर्धारित नहीं किया जा सकता, क्योंकि नीतिशास्त्र जीवन के निरपेक्ष मूल्य को या परमवांछनीय शुभ को समझने का प्रयास है। अतः तत्त्वज्ञान (वस्तुओं का सम्यक् ज्ञान) ही नैतिकता के पथ को प्रकाशित कर सकता है। कुछ नीतिज्ञों का कहना है कि नीतिशास्त्र का सम्बन्ध जीवन के क्रियात्मक वास्तविक पक्ष से है। इसलिए नीतिशास्त्र को अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन नीतिशास्त्र और अन्य विज्ञान | ५९. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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