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________________ जो क्षणिक दैहिक सुख में विश्वास करते हैं, दूसरी ओर वे अध्यात्मवादी नीतिज्ञ हैं जो आत्मा के शाश्वत स्वरूप को मानने के कारण क्षणिक सुख को जीवन का ध्येय नहीं मानते । यदि हम कुछ देर के लिए यह मान लें कि विचारक अपने नैतिक सिद्धान्त को तत्त्वदर्शन से सरलतापूर्वक पृथक रख सकते हैं तो एक दूसरी कठिनाई उपस्थित होती है। इन विचारकों के नैतिक दर्शन की सत्यता तथा उनके नैतिक सत्यों के प्रमाण को समझने का प्रयास करने पर हमें घूम-फिरकर तत्त्वदर्शन के ही क्षेत्र में जाना पड़ता है। नैतिक धारणाओं की प्रामाणिकता सत्ता के सत्यस्वरूप पर निर्भर है। नैतिक निर्णयों के विधान को स्वीकार करने के लिए तत्त्वदर्शन का आश्रय लेना ही पड़ता है । चार्वाकमत के विचारकों ने ऐन्द्रिय सुख को जीवन का ध्येय इसलिए बताया कि वे जड़वाद में विश्वास रखते थे। अपने विश्व के स्वरूप के ज्ञान के अनुसार ही नीतिज्ञों ने नैतिक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है । तत्त्वदर्शन के निष्कर्षों का नैतिक मान्यताओं पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है। अन्य विज्ञानों के लिए यह कह सकते हैं कि वे अपने सीमित क्षेत्र में तत्त्वदर्शन से मुक्त हैं। पदार्थ विज्ञान जड़ और शक्ति के अस्तित्व को मानकर चलता है और गणित देश के अस्तित्व को। इन विज्ञानों के लिए यह जानना अनावश्यक है कि तत्त्वदर्शन जड़ पदार्थ, शक्ति और देश की धारणा को कैसे समझाता है; उन्हें वह वस्तुमूलक मानता है या आत्ममूलक । किन्तु जहाँ तक नैतिक मान्य-- ताओं का प्रश्न है वे अपने व्यापक और गूढ़ ज्ञान के लिए तत्त्वदर्शन पर आधारित हैं। उनकी प्रामाणिकता. और मूल्य का प्रश्न वास्तव में सत्ता के स्वरूप का प्रश्न है । जब मनुष्य यह जानना चाहता है कि मानव-जीवन-सम्बन्धी सक्रिय मूल्यों का निर्माण कैसे हुआ, मानव-व्यक्तित्व का सारतत्त्व क्या है, विश्व में उसका क्या स्थान है, तब वह तत्त्वदर्शन के क्षेत्र में प्रवेश करता है। बिना यह समझे कि 'मैं क्या हूँ' और 'मेरा सत्य रूप क्या है' यह कहना कठिन है कि मेरा क्या कर्तव्य है। मानव-चरित्र का मूल्यांकन करने के लिए उसके तात्त्विक स्वरूप को समझना अनिवार्य है। आध्यात्मिक तत्त्वदर्शन नीतिशास्त्र को (अ) तात्त्विक ज्ञान से नैतिक ज्ञान का निगमन करना चाहिए। (ब) नैतिक ज्ञान से तात्त्विक ज्ञान का निगमन करना चाहिए। (स) तत्त्वदर्शन और नीतिशास्त्र एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं। ___ इन मतों के विवादों में न जाकर हम यह मानेंगे कि नीतिशास्त्र अपने आदर्श तथा मान्यताओं के प्रमाण के लिए तत्त्वदर्शन पर माश्रित है। १८ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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