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________________ ईश्वरविद्या श्रद्धा, भक्ति एवं विश्वास का। एक-दूसरे से संयुक्त होकर ही दोनों पूर्णता को प्राप्त करते हैं । नीतिशास्त्र ईश्वरविद्या को विवेकसम्मत बनाता है और ईश्वरविद्या नीतिशास्त्र को सरस एवं आह्लाददायक बनाती है। नैतिकता की पराकाष्ठा ईश्वरविद्या है और ईश्वरविद्या का व्यावहारिक तथा व्यक्त रूप नैतिकता है। तत्त्वदर्शन-नीतिशास्त्र के आदर्श-विधायक स्वरूप का स्पष्टीकरण करते समय यह कहा जा चुका है कि इसका तत्त्वदर्शन से अत्यधिक सामीप्य है। तत्त्वदर्शन सत्ता के सम्यक स्वरूप को समझाने का सुव्यवस्थित प्रयास है। वह आत्मा, ईश्वर और जड़ जगत के विधान पर प्रकाश डालता है। वह बताता है कि विश्व प्रयोजनपूर्ण है या प्रयोजनशून्य ; वह नैतिक नियमों द्वारा संचालित होता है अथवा वह नैतिकता से शून्य है। तत्त्वदर्शन दृश्यमान और ज्ञेय के परे अज्ञेय जगत को समझना चाहता है; अनेकता और एकता के सिद्धान्तों का अध्ययन करना चाहता है । वह नीतिशास्त्र को बताता है कि व्यक्ति का सत्यस्वरूप क्या है, उसकी विश्व में क्या स्थिति है, उसकी एकाकी सत्ता कहाँ तक सम्भव है । तत्त्वदर्शन उस अन्तर्जगत का पूर्ण ज्ञान देता है जो मानव-जीवन, मानव-कार्यों एवं विचारकों का क्षेत्र है। मानव-जीवन के क्रियात्मक पक्ष से सम्बन्ध रखने वाले नीतिशास्त्र के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि वह मनुष्य की सत्ता, उसके वास्तविक स्वरूप तथा परिस्थिति का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर ले। नीतिशास्त्र यह मानता है कि मनुष्य केवल निम्न प्राणियों अथवा वनस्पतियों का-सा जीवन नहीं बिताता है। वह मात्र दैहिक और भौतिक आवश्यकताओं का प्राणी नहीं है। वह नैतिक प्राणी है, वह अपनी प्रकृति का परिष्कार कर सकता है। उसका अपने सामाजिक और भौतिक वातावरण से चेतन सम्बन्ध है। उसकी प्रात्म-चेतना परमध्येय के अनुरूप कर्म करना चाहती है। वह जानना चाहता है कि उसका वास्तविक स्वरूप क्या है; विश्व में उसकी क्या स्थिति और स्थान है। अपने कर्मों को वांछनीय ध्येय के अनुसार निर्धारित करने के लिए वह तत्त्वदर्शन के समीप आता है । नतिक सिद्धान्तों का अध्ययन यह बतलाता है कि व्यक्ति की नैतिक धारणाएँ उसके तात्त्विक दृष्टिकोण से सर्वाधिक प्रभावित होती हैं । नैतिक प्रश्नों का समाधान विश्व-निर्माण सम्बन्धी दार्शनिक विचारों पर निर्भर है,' एक ओर स्थूल जड़वादी नीतिज्ञ हैं १. नीतिशास्त्र और तत्त्वदर्शन के सम्बन्ध के बारे में वास्तव में तीन मत हैं नीतिशास्त्र और अन्य विज्ञान | ५७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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