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________________ हा कर कर्तव्य के निरपेक्ष आदेश को महत्त्व दिया । काण्ट और सहजज्ञानवादी मनोवैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक पद्धति के साथ दार्शनिक पद्धति को अपनाते हैं । वास्तविकता से अधिक महत्त्व प्रादर्श को देते हैं। दार्शनिक विधि-प्लेटो, अरस्तु, हीगल, ग्रीन तथा उसके अनुयायियों ने दार्शनिक निगमनात्मक प्रणाली को अपनाया। इन आदर्शवादी नीतिज्ञों ने नैतिक आदर्श को समझने के पूर्व परमसत्य को समझना आवश्यक समझा । सत्ता के स्वरूप से नैतिकता के अन्तर्तथ्य का निगमन किया। नीतिशास्त्र अपने आदर्श के लिए तत्त्वदर्शन पर निर्भर है। तत्त्वदर्शन ही उसे ध्येय की धारणा देता है । तत्त्वदर्शन के आधार पर प्लेटो ने समझाया कि कालजगत शाश्वत की छायामात्र है । हीगल का कहना है कि अनेकता परमसत्य की ही अभिव्यक्ति है और ग्रीन ने परमसत्य को शाश्वत चैतन्य के रूप में स्वीकार किया । मनुष्य के स्वभाव को ऐसे दर्शन पर आधारित करके इन विचारकों ने कहा कि मनुष्य को अपनी सीमाओं से ऊपर उठकर शाश्वत को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए । शाश्वत ही मनुष्य का वास्तविक स्वरूप एवं आन्तरिक सत्य है। शाश्वत को प्राप्त करना पूर्णता को प्राप्त करना है, यही परमध्येय है। ऐसे सिद्धान्त को, जो कि ज्ञेय का आधार अज्ञेय को मानता है, जनसामान्य के लिए स्वीकार करना कठिन है । जनसामान्य उस सत्य को सरलता से ग्रहण कर सकता है जिसका कि वह अनुभव कर सके । वह यह जानना चाहता है कि अनुभवात्मक आत्मा का आचरण कैसा होना चाहिए । नीतिशास्त्र व्यावहारिक विज्ञान है । वह वास्तविक तथ्यों से विरक्त होकर प्रादर्श की ओर नहीं जा सकता। प्लेटो ने तो शाश्वत और नश्वर जीवन के द्वैत को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है । ऐसे परमतात्त्विक दृष्टिकोण उस विज्ञान के लिए अनुचित हैं जिसका सम्बन्ध व्यावहारिक जीवन से है। पालोचना : नैतिक विधि की प्रोर-भौतिक घटनाओं, जैव और सामाजिक तथ्यों, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण तथा भूत और वर्तमान से सम्बन्ध रखनेवाली विधि चाहे और कुछ भी हो, नैतिक विधि नहीं है। नैतिक विधि भविष्य से . असम्बद्ध नहीं रह सकती । वह उस मानवोचित आदर्श को समझना चाहती है जो व्यक्ति को पूर्णता प्रदान करके गौरवान्वित करता है। आदर्श का जिज्ञासु व्यक्ति भत, वर्तमान और भविष्य से अविच्छिन्न रूप से सम्बन्धित है। वह अपने ज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान, कार्य-कारण का नियम, अचेतन तथा चेतन तथ्य तक सीमित नहीं रख सकता । नैतिकता इस सत्य पर आधारित है कि आत्मप्रबुद्ध नीतिशास्त्र की प्रणालियाँ | ४७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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