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________________ प्राणी केवल देह-मन की सामान्य आवश्यकताओं का प्राणी नहीं है । वह आध्यात्मिक और नैतिक है । यथार्थ से सम्बन्धित होने पर भी नीतिशास्त्र उसी में सीमित नहीं रह जाता है बल्कि उससे ऊपर उठने की चेष्टा करता है। नैतिक आदर्श वह सत्य है जो अनुभवात्मक होने पर भी अनुभवातीत है । वह 'क्या है' को स्वीकार अवश्य करता है पर वह केवल 'क्या है' नहीं है । वह उन समस्त सम्भावनाओं का सूचक है जो भविष्य में पूर्णता प्राप्त करेंगी । यही कारण है कि नीतिशास्त्र उस पूर्णता ( अन्तिम स्थिति) और निश्चयात्मकता को भी प्राप्त नहीं कर सकता जो गणित और भौतिक विज्ञानों का विशेष गुण है । नीतिशास्त्र को भूत और भविष्य तक सीमित कर देना अथवा उसे वर्णना - त्मक विज्ञानों की श्रेणी में रख देना भ्रान्तिपूर्ण है । नैतिक रुचि का केन्द्र अपनेआप में ऐतिहासिक घटनाएँ नहीं हैं किन्तु उन घटनाओं का परम स्पष्टीकरण और शाश्वत अर्थ है । नीतिशास्त्र नैतिक आदर्श एवं मानदण्ड की खोज करता है और प्रचलित या भावात्मक नैतिकता का इस श्रादर्श के सम्बन्ध में समर्थन श्रथवा समर्थन करता है । अतः नीतिशास्त्र के लिए कर्म और घटनाओं के कारणों की खोज उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है जितनी कि स्वयं कर्म, उसका परिणाम और वह आदर्श जिसको कि वह व्यक्त करता है । नीतिशास्त्र का प्रत्यक्ष सम्बन्ध अभ्यास, रीति-रिवाज और नियमों के उद्गम के इतिहास से नहीं है वरन् उनके वर्तमान मूल्य से । वह नियमों का मूल्य उन लोगों के सम्बन्ध में प्रकता है जिनके जीवन में वे व्यवहृत होते हैं । आदर्श से सम्बन्धित होने के कारण ही मनुष्य के स्वभाव का मनोवैज्ञानिक श्रौर विश्लेषणात्मक एवं तथ्यात्मक वर्णन मात्र नैतिक समस्याओं को हल नहीं कर सकता है । अथवा नैतिक तथ्यों का मनोवैज्ञानिक वर्णन नैतिक आदर्श के स्वरूप को निर्धारित नहीं कर सकता । निःसन्देह मनोविज्ञान नैतिक चेतना के दृष्टिगत विषयों को प्रस्तुत करने में पूर्णतः समर्थ है किन्तु नीतिशास्त्र ऐसे ज्ञान से पूर्णतः सन्तुष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि उसके निर्णय मूल्यपरक होते हैं । घटनाओं के अर्थ का स्पष्टीकरण करनेवाले आदर्श - विधायक विज्ञान के लिए शुद्ध वैज्ञानिक विश्लेषण अपर्याप्त हैं । नीतिशास्त्र उचित - अनुचित के मानदण्ड को जानना चाहता है और उस मानदण्ड के आधार पर कर्म का मूल्यांकन करता है । अच्छे कर्म का शुभत्व कर्म की समग्रता पर निर्भर है किन्तु मनोवैज्ञानिक पद्धति विश्लेषणात्मक है । वैज्ञानिक पद्धति की सीमाओं को देखते हुए क्या हम यह कह सकते हैं कि ४८ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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