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हैं। इसी को लक्ष्य करते हुए गांधीजी कहते हैं कि मनुष्य का श्राचरण धार्मिकसर्व कल्याणकारी - होना चाहिए | श्रहिंसा मानवीय सत्य का ही सक्रिय गुण है । इसके दो रूप हैं : भावरूप या धनरूप श्रीरं प्रभावरूप या ऋणरूप । प्रभावात्मक रूप के अनुसार किसी की हिंसा नहीं करनी चाहिए । पर-पीड़न पाप है । शारीरिक अथवा मानसिक पीड़ा पहुँचाना पाप है । गांधीजी तत्वज्ञानी होने के नाते अहिंसा का व्यापक अर्थ ' लेते हैं । अहिंसा का भावात्मक रूप सर्व कल्याणकारी है । लोकमंगल के हेतु विश्व- प्रेम को स्वीकार करना ही अहिंसा
| हिंसात्मक व्यक्ति के लिए राग, द्वेष, क्रोध, मोह, लोभ और घृणा आदि मन के विकार धर्म हैं । उसे मनसा, वाचा, कर्मणा, पवित्र तथा संयमी होना चाहिए । जीवनरूपी कर्मक्षेत्र में उसे हिंसा तथा असत्य के विरुद्ध निरन्तर संग्राम करना चाहिए । कर्मक्षेत्र में अकर्मण्यता के लिए स्थान नहीं है । सदैव धर्म की स्थापना के लिए प्रयास करना चाहिए । परिणाम से डरकर कर्तव्य से विमुख होना पाप है | मनुष्य को अहिंसा ग्रीत्मबल देती है । वह उसे क्षुद्र इच्छाओं तथा दाम्भिक भावनाओं से ऊपर उठाती है । उसे स्वार्थहीन तथा आत्मविजयी बनाकर विश्वात्मा की अनुभूति कराती है गांधीजी के अनुसार सत्य और अहिंसा दोनों ही प्राचीन तथा शाश्वत हैं । सत्य ही सच्चिदानन्द भगवान् है और अहिंसा उसकी प्राप्ति का साधन है । अभीष्ट (सत्य) की प्राप्ति के लिए अहिंसा एकमात्र साधन है ।
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सत्याग्रह — सत्याग्रह' का अर्थ है सत्य के प्रति प्राग्रह | सत्य व्यक्तिविशेष
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१. अपने संकीर्ण अर्थ में अहिंसा का अभिप्राय अधिकतर कार्य और दैहिक हिंसा न करने से रहता है। गांधीजी ने गौतम बुद्ध के समान ही हिंसा का व्यापक अर्थ लिया । गौतम बुद्ध और गांधी, दोनों ने ही मानवता के कल्याण के लिए विश्वप्रेम, करुणा, सेवा और निःस्वार्थ भाव को अपनाने की लोगों से प्रार्थना की।
२. सत्य और अहिंसा गांधीजी के अनुसार उतने ही प्राचीन हैं जितने कि पर्वत । उनका कहना है कि मैं दुनिया को कोई नयी बात नहीं बता रहा हूँ । मुझे सत्य की खोज करने में सत्य और अहिंसा का बोध हुमा । श्रहिंसा का सिद्धान्त अत्यन्त प्राचीन | वह ऋग्वेद में भी पाया जाता है। उपनिषदों में भी ऐसी अनेक कथाएँ हैं जिनके द्वारा विश्वप्रेम का प्रतिपादन हुआ है । गीता, बौद्धधर्म, ईसाई धर्म में भी इसे मान्यता दी गयी है । इसे सर्वोत्तम नीति बताया गया है ।
३. सत्याग्रह का जन्म दक्षिण अफ्रीका में हुआ । इसके द्वारा गांधीजी ने वहाँ के काले लोग को बताया कि अपने अधिकारों के लिए जाग्रत होयो । वहाँ उन्होंने 'टालमटाय फार्म' खोलकर लोगों को स्वावलम्बी बनाने का प्रादेश दिया। आत्मबल और संघटित शक्ति
३५० / नीतिशास्त्र
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