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________________ तक ही सीमित नहीं है । अपने व्यापक रूप में वह सर्वशक्तिसम्पन्न है; उसी प्रति ग्रह सत्याग्रह है । केवल विचारों से अहिंसात्मक होना पर्याप्त नहीं है | उसे कर्मक्षेत्र में प्रतिष्ठित करना चाहिए । असत्य के विरुद्ध खड़े होकर और सत्य के प्रति जागरूक रहकर ही अहिंसा को व्यवहार में लाया जा सकता है | सत्याग्रही के लिए अन्याय, अत्याचार, क्रूरता, अनीति आदि को स्वयं सहना अथवा दूसरे को उन्हें सहते हुए देखना असह्य है । अधर्म और अनैतिकता को हटाने के लिए वह अहिंसात्मक सत्याग्रह करता है | सत्याग्रह के द्वारा वह लोकजीवन के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करके अपने अधिकारों का भोग करता है | सत्याग्रही कर्म करते समय विपक्षी अथवा कठोर से कठोर अत्याचारी सम्मुख भी नहीं झुकता । प्राणिमात्र को अत्याचार से मुक्त करना उसका ध्येय है । किन्तु इस मुक्ति को प्राप्त करने के लिए अहिंसा ही एकमात्र साधन है । द्वेष, घृणा, अन्याय को प्रेम से जीतना चाहिए । प्रतिशोध की भावना पाप' है । घृणा के प्रति घृणा अथवा पशुबल के प्रति पशुबल अनुचित है। हिंसा को अहिंसा से अथवा पशुबल को आत्मबल से जीतना चाहिए । समस्त मनुष्य एक ही परिवार के प्राणी हैं । हिंसा से ( विवश करके अथवा डरा-धमकाकर ) उनका हनन करने के बदले प्रेम से उनका सुधार करना चाहिए। गांधीजी का सत्याग्रह के में ज़ोर दिया। लोक-सेवा और नैतिक जीवन की ओर ध्यान आकर्षित किया । प्राकृतिक उपचार, सफाई और मिताहार का पाठ पढ़ाया । सत्याग्रह का पूर्ण विकास भारत में हुआ । ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने लोगों के स्वाभिमान की रीढ़ तोड़ दी थी। वे अपनी संस्कृति से विमुख हो गये थे । मानसिक और सांस्कृतिक दासता स्वीकार कर चुके थे 1 गांधीजी ने सत्याग्रह तथा असहयोग आन्दोलनों, देशव्यापी हड़तालों और कठोर दीर्घकालीन उपवासों द्वारा नैतिक पतन से भारतीयों को बचाया । सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, आत्मनिग्रह आदि का कठोर व्रत लोगों को सिखाया । आत्म-त्याग और बलिदान द्वारा लोकसेवा अथवा आत्मसन्तोष का मार्ग दिखाया। लोक-जीवन और मानव स्वभाव का उन्हें गूढ़ ज्ञान था । लोकरक्षा और संस्कृति के मूल तत्त्वों की रक्षा के लिए ही उन्होंने ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी । १. अपनी आत्मकथा में गांधीजी कहते हैं कि वे 'अवगुण बदले गुण करे, सत्य धर्म का मर्म है"- " - इस कथन से प्रभावित हुए । यीशु के अनुसार भी हमें बुराई को बुराई से नहीं रोकना चाहिए । यही बात रहीमदासजी ने भी कही है- 'जो तोकूं काँटा बुवै, ताहि बोय तूं फुल ।' राजनीति के क्षेत्र में यह विचित्र अथवा अव्यावहारिक कथन लगता है । गांधीजी ने भारत को अहिंसात्मक आत्मबल तथा सत्याग्रह द्वारा स्वतन्त्रता दिलाकर उसकी वास्तविकता को केवल सिद्ध ही नहीं किया वरन् विश्व के इतिहास में एक नयी राजनीति को जन्म और स्थान दिया है । Jain Education International For Personal & Private Use Only गांधीजी / ३५१ www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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