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________________ ने भी भलीभाँति समझा। गान्धीजी को तो इस सत्य की तीव्र अनुभूति हुई और इसको दूर करने के लिए उन्होंने सत्य और अहिंसा का व्रत लेकर जनसेवा को अपने जीवन का ध्येय बनाया। मार्क्स के रक्तक्रान्ति के नारे के विरुद्ध उन्होंने स्वेच्छित अपरिग्रह और सम्पत्ति के संरक्षण की चेतना के स्थायी मूल्य को समझाया। यदि डण्डे के जोर से समानता स्थापित हो भी गयी तो वह जल्दी ही मिट जायेगी। भयवश किसी नियम का पालन करना उसे अपनाना नहीं है। आर्थिक और राजनीतिक क्रान्तियों का जीवन के बाह्य पक्ष से सम्बन्ध है । हमें हृदय की क्रान्ति एवं उस व्यापक सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक जागरण की आवश्यकता है जो चिरस्थायी रहेगा। लोकसंघटन अपने-आपमें अपर्याप्त है। मनःसंघटन इसका पूरक है और वह नैतिक चेतना की जाति की अपेक्षा रखता है। अत: प्रान्तरिक अनुभूति के विना बौद्धिक सहानुभूति और आन्तरिक एकता के बिना बाह्य एकता केवल एकांगी सिद्धान्तमात्र रह जाते हैं। ___ जीवन के दो पक्ष : ऊर्ध्व और समतल : व्यक्ति नगण्य—मार्क्स का भौतिकवाद सामाजिक वास्तविकता का जन्मदाता है। उसने जीवन को समतल में देखा और उसकी एकांगी व्याख्या की । जीवन के दो पक्ष हैं : ऊर्ध्व और समतल अथवा प्राध्यात्मिक और भौतिक । ये दोनों आपस में विरोधी नहीं हैं और जीवन में युगपत् रूप से कार्य करते हैं। मार्क्स की ऐतिहासिक और आर्थिक मीमांसा मानवीय चेतना, विचार और भावना को नहीं समझा सकती किन्तु मार्क्स अर्थशास्त्रीय व्याख्या में इतना लीन हो जाता है कि वह जीवन के ऊर्ध्व अथवा आत्मिक एवं आध्यात्मिक पक्ष को भूल जाता है । शारीरिक सुख अपनेआपमें अपूर्ण है। सुखी जीवन आत्मिक और शारीरिक सुख का योग है। साम्यवादी तन्त्र में शारीरिक तथा भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य को अपनी वैयक्तिक स्वतन्त्रता से हाथ धोना पड़ता है । व्यक्ति का जीवन, उसका परिवार, उसके विचार और कर्म सब कुछ राज्य के अधीन हो जाते हैं। सामूहिकता के लिए राज्य उसके सर्वस्व का हरण कर सकता है। राज्य साम्यवाद के विरोधियों को मृत्युदण्ड दे सकता है। ऐसे समय में लेखक और कलाकार की प्रतिभा का मूल्य भी इसी पर निर्भर है कि वे राज्य तथा सर्वहारा की गुणगाथा और धनिकों की नशंसता को कितनी अभिव्यक्ति दे सकते हैं। अतः साहित्य १ देखिये-भाग ३, अध्याय २५ । कार्ल मार्क्स | ३०३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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