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________________ पर जीवन के विरोध एवं विषमताएँ सुलझायी जा सकें । नीतिशास्त्र मनुष्य की बौद्धिक माँग - 'शुभ क्या है'- का विज्ञान है । यह बतलाता है कि मानव जीवन विभिन्न विरोधी इच्छाओं, भावनाओं, आवेगों, रागात्मक प्रवृत्तियों का कोलाहलपूर्ण विप्लवमात्र नहीं है । वह नियमबद्ध और संगतिपूर्ण है एवं उसकी अपनी सार्थकता है । जब विभिन्न कर्तव्यों के बीच संघर्ष होता है, अनेक इच्छाओं के कारण मानसिक द्वन्द्व पैदा होता है तब यह मनुष्य का मार्गदर्शक बनता है। जब मनुष्य किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और नहीं समझ पाता कि वह किस मार्ग का अनुसरण करे, उसका अपने प्रति और समाज के प्रति क्या कर्तव्य है, इन कर्तव्यों के बीच कैसे सामंजस्य स्थापित किया , तब उसे नैतिक अन्तर्दृष्टि की आवश्यकता होती है । नैतिक ज्ञानं ऐसे व्यक्ति के लिए एक दृढ़ अवलम्बन के समान है । यह उसे आत्मबल देता है । इस बल के सहारे ही वह प्रचलित मान्यताओं से ऊपर उठकर महान् कर्म करता है । यदि महापुरुषों की जीवनियों का अध्ययन किया जाय अथवा बुद्ध, ईसा और गान्धी के कार्यक्षेत्र को समझने का प्रयास किया जाय तो यह स्पष्ट - हो जायेगा कि उनका एकमात्र सम्बल उनका नैतिक बल अथवा श्रात्म बल ही था। उसी के सहारे उन्होंने जीवन में अनिवर्चनीय सफलता प्राप्त की । साधारणतः व्यक्ति धर्मभीरु और समाजभीरु होता है । नरक के अथवा पड़ोसी के भय से वह जघन्य कर्म सहर्ष कर लेता है । उसका विवेक कुण्ठित हो जाता है । वह यन्त्रवत् नियमों का पालन करने लगता है । नियमों के औचित्य की ओर से वह उदासीन रहता है । उसकी अन्धनैतिक निष्ठा उससे अनेक अनैतिक कर्म करवाती है । वह न तो जीवन के मूल्य को समझने का प्रयास करता है। और न नियमों का बौद्धिक रूप से विवेचन करता है । मनुष्य को ऐसी दयनीय और हीन स्थिति से उबारने का प्रयास करना ही नीतिशास्त्र का ध्येय है । यह मनुष्य को समझाता है कि वह स्वतन्त्र बौद्धिक प्राणी है । अतः वह शिवत्व को प्राप्त कर सकता है । नीतिशास्त्र प्रत्येक व्यक्ति के आचरण को विवेकसम्मत बनाना चाहता है, जनमत को बौद्धिक स्तर पर उठाना चाहता है ताकि प्रत्येक मानव-शिशु स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण में साँस ले सके; व्यष्टि श्रौर समष्टि सुदृढ़, स्वावलम्बी और सुसंस्कृत बन सकें; रागद्वेष, काम-क्रोध, लोभ-मोह से ऊपर उठकर व्यक्ति विश्व का नागरिक बन सके । कई आलोचकों का कहना है कि नीतिशास्त्र कोरा सिद्धान्त है । वह उपयोगिता रहित और वास्तविकताशून्य है । उसका व्यावहारिक मूल्य नगण्य २८ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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