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________________ में अन्धविश्वासों एवं संकीर्ण रूढ़ि-रीति-जनित कर्मों का । उदाहरणार्थ, भारत में जो छुपाछूत, अस्पृश्यता, बाल-विवाह, वैधव्य आदि तथाकथित धार्मिक नियम मिलते हैं वे मनुष्य की विवेक-कुण्ठित प्रवृत्ति के सूचक हैं । वे उस अविकसित ह्रासोन्मुखी बौद्धिक स्थिति पर प्रकाश डालते हैं जो मध्ययुगीन पूर्वाग्रहों और अन्धविश्वासों से ग्रसित हैं। जनसाधारण चमत्कारवाद, जादू-टोना आदि इन्हीं अन्ध-रूढ़ि-रीतियों में विश्वास करता है क्योंकि उसकी मानसिक स्थिति विकसित नहीं है। तर्कहीन और विवेकहीन धर्म केवल प्रचलित मान्यताओं, सामाजिक तथा धार्मिक कहे जानेवाले प्रचलनों का सूचक है। अथवा सामान्यतः धर्म को जिस रूप में लोग ग्रहण करते हैं वह केवल बाह्याडम्बर तथा संकीर्णता से भरे नियमों का ढाँचामात्र है। वे प्राचीन युगों के मनुष्यों की आवश्यकताओं और अभ्यासों को सूचित करते हैं। किन्तु विकास और परिवर्तन के कारण उन नियमों का मूल्य भी बदलता जाता है। वे वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते हैं। वे लाभप्रद होने के बदले हानिकारक हो जाते हैं। अविवेकी व्यक्ति इन प्रचलनों और अभ्यासों का पालन धर्म के नाम पर करते हैं, अथवा पूर्वजों और ऋषि-मुनियों के ज्ञान की दुहाई देते हैं। आज की उन्नत भौतिक तथा मानसिक स्थिति इन प्राचीन प्रथाओं को अनैतिक सिद्ध कर सकती है। प्राचीन परिपाटियों का मूल्य उस समय के लिए है जिस समय की आवश्यकता की पूर्ति के लिए उनका निर्माण हुआ। वे वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते हैं। वे बौद्धिक जिज्ञासा को सन्तोष नहीं दे सकते हैं। धार्मिक आदेशों के बीच विरोध भी मिलता है। अतएव नीतिशास्त्र तथाकथित धर्म को उसी रूप में मान्यता नहीं देता । वह शुद्ध आचरण के मापदण्ड की खोज करता है; परमसत्य को समझना चाहता है। वह सत्य के मार्ग को ही धार्मिक (उचित, तर्कसम्मत और विवेकसम्मत) मार्ग कहता है और धर्म को भी सत्य की कसौटी पर कसता है। बौद्धिक विश्लेषण एवं प्रश्न सूचक दृष्टिकोण द्वारा धर्म-सम्बन्धी बाह्य विरोधों के भीतर आन्तरिक एकता को खोजता है । ___ यदि धर्म से अभिप्राय उस ईश्वर-ज्ञान से है जो समष्टि के कल्याण को महत्त्व देता है तो नीतिशास्त्र निस्सन्देह धार्मिक है। वह उदार-चित-वृत्ति, सहिष्णुता, एकता और न्याय का पाठ पढ़ाता है; जनसाधारण के अव्यक्त नैतिक विश्वासों को बौद्धिक अन्तर्दृष्टि देता है; सदाचरणवाले व्यक्तियों को प्रात्मबल का अमोघ अस्त्र देता है और अधर्म, अनीति, अन्याय, अशुभ और अनौचित्य के विरुद्ध लड़ने को कहता है । वह समस्त मानव-जीवन का अध्ययन २६ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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