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________________ नीतिशास्त्र की उपयोगिता : इसके पक्ष का समर्थन तथा उसके विरुद्ध अपवादों का खण्डन-नीतिशास्त्र की क्या उपयोगिता है ? नैतिक ध्येय और लक्ष्य को क्यों प्राप्त करना चाहिए ? इसका जीवन में क्या मूल्य है ? क्या इसका आदर्श वास्तविक है ? इन सब प्रश्नों के समाधान के लिए आवश्यक है कि इसके विरुद्ध अपवादों की गम्भीरतापूर्वक समीक्षा की जायं । नीतिशास्त्र के पालोचकों के अनुसार वह अपने मूलरूप में ध्वंसात्मक है। वह वैयक्तिक विज्ञान है । व्यक्ति का कल्याण ही उसका ध्येय है। वह अधार्मिक और अवास्तविक है । किन्तु इन अपवादों में सत्य नहीं है। - वह निर्माणात्मक है-नीतिशास्त्र इस आशा और विश्वास पर चलता है कि मनुष्य अपने कर्मों को विवेक से संचालित कर सकता है। इस आधार पर वह मनुष्य के आचार-विचार, सामूहिक एवं राष्ट्रीय चरित्र का विश्लेषण करता है। कोई भी विशिष्ट आचरण, धर्म, संस्कृति और नियम कहाँ तक उचित है वह इस पर प्रकाश डालता है। उसके अनुसार औचित्य और अनौचित्य का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आलोचनात्मक होना आवश्यक है। किन्तु यह नीतिशास्त्र का बाह्य और अस्थायी पक्ष है। अपने मूलरूप में वह भावात्मक और निर्माणात्मक है। नीतिशास्त्र के दो रूप-निर्माणात्मक तथा पालोचनात्मक-वास्तव में नीतिशास्त्र के दो रूप हैं : धनात्मक या निर्माणात्मक और ऋणात्मक या आलोचनात्मक । आलोचना के द्वारा वह निर्माण करता है। मनुष्य को असत्य से सत्य की ओर ले जाता है। उसको सत्य की ओर आकृष्ट करने के अभिप्राय से प्रमुखअप्रमुख, नित्य-अनित्य तथा भाव और रूप के भेद को समझाता है। बौद्धिक विश्लेषण द्वारा व्यक्ति को उसकी तात्विक स्थिति का बोध कराता है । अन्धविश्वासों, कुरीतियों और धार्मिक कट्टरपन्थी के चक्कर में फंसने से सचेत करता है । उसे सावधान करता है कि कठपुतलों का-सा जीवन मनुष्य के लिए हास्यास्पद है। ये मनुष्यत्व के ह्रास के चिह्न हैं। किसी भी नियम को वेद-पुराण की या दिव्य आदेश की दुहाई देकर मान लेना मूर्खता है । नीतिशास्त्र के अनुसार देश, काल और परिस्थिति के अनुरूप नियमों में परिवर्तन होना आवश्यक है और विवेकसम्मत, कल्याणप्रद नियम ही पालन करने योग्य हैं। ___नियमों की सत्यता और असत्यता को सिद्ध करने के लिए नीतिशास्त्र वैज्ञानिक और बौद्धिक प्रणाली स्वीकार करता है । बौद्धिक आलोचना, सन्देह और अविश्वास द्वारा वह सार्वभौम नैतिक मान्यताओं का सृजन करता है। २४ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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