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________________ बताता है कि वह श्रेष्ठ प्राणी है, उसे मानव-गौरव के बोध से प्रेरित होकर कर्म करने चाहिए। इसी उद्देश्य से वह परमशुभ की खोज करता है । उसके अनुरूप कर्मों के औचित्य-अनौचित्य को समझाने का व्यवस्थित प्रयास करता है । उसके क्षेत्र की परिभाषा देना, उसको सीमित या केन्द्रित करना, अत्यन्त कठिन है। उसका विषय व्यापक है। समस्त नैतिक चेतना ही इसका क्षेत्र है, जो मनुष्य के आचरण एवं उसके सम्पूर्ण जीवन को आच्छादित करती है। वह मनुष्य के क्रियाकलापों और कर्मों का मूल्यांकन करता है, जो इस सत्य पर आधारित है कि मनुष्य आत्म-प्रबुद्ध प्राणी है, स्वतन्त्र है, उसके जीवन की गति अर्थहीन या सारहीन नहीं है। वह उच्चतम आदर्शों को प्राप्त कर सकता है । इस आधार पर नीतिशास्त्र मनुष्य के आचरण पर गुणात्मक निर्णय देता है । कर्मों का नैतिक मूल्यांकन करने के लिए वह गुण-अवगुण, कर्तव्य-अधिकार, शुभअशुभ, उचित-अनुचित आदि का बौद्धिक विश्लेषण करता है। उनके पीछे जो सत्य है उसे जानने का भी प्रयास करता है। सम्पूर्ण मानव-जीवन का व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त करना एवं मानवता और सभ्यता के आदर्श को स्पष्ट रूप से समझना ही उसका चिरन्तन विषय है। उसे मनुष्य-जीवन की बाहरी सामाजिक झाँकी से सन्तोष नहीं होता है। वह उसके प्राभ्यन्तरिक जीवन में प्रवेश करता है; तत्त्वदर्शन को अपनाता है। उसके लिए यह भी अत्यन्त आवश्यक है कि वह कर्म के उचित और अनुचित के बारे में तार्किक समाधान करे । यहाँ पर वह तर्कशास्त्र और वैज्ञानिक प्रणाली को अपनाता है। व्यक्ति के आचरण को न्याय-संगत बनाने के लिए, उसे मानवीय और नैतिक स्तर पर उठाने के लिए, वह लोक-प्रचलित धारणाओं, जनप्रिय विश्वासों, भ्रान्त विचारों, धार्मिक प्रास्थाओं का आलोचनात्मक परीक्षण करता है। जीवन के गूढ़ सत्य को जानने के लिए सामाजिक प्रचलनों, राजनीतिक नियमों, और व्यक्तिगत निष्ठानों का बौद्धिक विश्लेषण करता है। मनुष्य के कर्मों के औचित्य-अनौचित्य को निर्धारित करने के लिए उन सभी विद्यानों-मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, जीवशास्त्र, राजनीति, ईश्वरज्ञान, तत्त्वदर्शन आदि का अध्ययन नीतिशास्त्र के क्षेत्र के अन्तर्गत प्रा जाता है जो मनुष्य के स्वभाव और स्वरूप पर प्रकाश डालती हैं। मनुष्य के चरमशुभ को समझने के लिए, उसके जीवन के विभिन्न अंगों का उन्नयन करने के लिए वह उसके व्यक्तित्व का सम्पूर्ण अध्ययन करता है। मानव-जीवन का समस्त क्रियात्मक पक्ष तथा सम्पूर्ण मानव-जीवन ही नीतिशास्त्र क्षेत्र और विषय है। नैतिक समस्या | २३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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