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________________ . स्थूल दृष्टि से यह भाषित होता है कि ध्येय अनेक हैं जो वैयक्तिक तथा प्रात्मगत हैं। किन्तु वास्तव में विभिन्न ध्येय अपने आपमें परम नहीं है। वह परमध्येय के लिए साधनमात्र हैं। मनुष्य धन या अन्य इच्छित वस्तु, धन या अन्य इच्छित वस्तु के लिए नहीं चाहता वरन् किसी विशिष्ट प्रादर्श की पूर्ति के लिए। साधारणतः जिनको हम साध्य कहते हैं वे अपने मूल रूप में साधनमात्र हैं। उनका सापेक्ष महत्त्व है। अतः विभिन्न ध्येयों का परमध्येय एक ही है। यह निरपेक्ष ध्येय अनन्त सापेक्ष ध्येयों की संगतिपूर्ण इकाई है। यह वह ध्येय है जिसकी प्राप्ति के लिए मानव सदैव से प्रयत्नशील रहा है, जो एक बौद्धिक प्राणी के लिए परमवांछनीय है तथा जो ध्येय अन्ततः एक है। नैतिक ज्ञान के अनुसार शुभ अपने सर्वोत्तम रूप में एक ही है, जीवन का परम आदर्श भी एक ही है और यह अद्वितीय आदर्श ही नैतिक निर्णय की कसौटी या मापदण्ड है। ... परमशुभ का स्वरूप-यदि यह मान लें कि सर्वोत्तम शुभ एक है तो इसका क्या स्वरूप है ? शुभ के स्वरूप के बारे में नीतिज्ञों के विभिन्न मत हैं, जो विभिन्न सिद्धान्तों के अध्ययन से ही स्पष्ट होंगे। संक्षेप में, कुछ विचारकों के अनुसार, जीवन का सर्वोत्तम शुभ इन्द्रियसुख है, कुछ के अनुसार शुद्ध बौद्धिक जीवन और कुछ के अनुसार प्रात्म-सन्तोष है। नैतिक सिद्धान्तों के अध्ययन से यह भी स्पष्ट हो जायेगा कि परमशुभ को समझने में कहाँ तक सफलता मिली है, उसके आदेश को व्यक्ति क्यों मानता है, और यह आदेश आन्तरिक है या बाह्य । नीतिशास्त्र इस आदेश को अन्तःप्रेरित अन्तरुद्भूत और अन्तरारोपित मानता है। उसका कहना है कि विवेकशील आत्म-प्रबुद्ध व्यक्ति नैतिक आदर्श को, उसके अन्तर्जात गुणों के कारण स्वयं स्वीकार करते हैं। क्योंकि वह उनकी नैतिक चेतना और बौद्धिक आत्मा का आदेश है । वह आदेश ही परमवांछनीय शुभ है। नैतिक रूप से जागरूक प्राणी इसका अनिवार्यतः पालन करते हैं। अरस्तू (Aristotle) के अनुसार नीतिशास्त्र उस विचार या धारणा को खोजता है जो कि मनुष्य के लिए परमशुभ या वांछनीय है। जिसे वह स्वयं उसकी पूर्णता के कारण स्वीकार करता है। अतएव मानव-जीवन में जो आदर्श स्वत:निहित है, नीतिशास्त्र सामान्यतः उसी का अध्ययन है।। नीतिशास्त्र का विषय और क्षेत्र नीतिशास्त्र का विषय और क्षेत्र क्या है ? वह मनुष्य के किस सत्य को महत्त्व देता है ? । नीतिशास्त्र मानवता के उच्चतम आदर्शों का पोषक है। वह मनुष्य को २२ / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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