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________________ आत्मनिर्भर व्यक्ति है। वैयक्तिक स्वतन्त्रता को ही सब-कुछ माननेवाला यह सिद्धान्त सामाजिक कल्याण को भूलकर परम स्वार्थवाद को अपना लेता है। अनेक दुर्बलताओं से युक्त : वैराग्यवाद की प्रथम अभिव्यक्ति-सिनिक सिद्धान्त प्रमुख रूप से प्रभावात्मक और विधिवत् (Formal) है। विधिपालन को अथवा नियमानुवर्तिता को उसने विशेष महत्त्व दिया है। नियम का पालन करना उचित है, पर साथ ही यह जानना भी आवश्यक है कि नियम का अन्तर्तथ्य (Content) क्या है ? नियम का क्या अर्थ और सार है तथा विवेक, सदगुण और कल्याण से क्या अभिप्राय है ? सिनिक्स ने जीवन के अन्तर्तथ्य को समझाये बिना ही वैयक्तिक और सामाजिक शुभ की अभावात्मक और विधिवत् व्याख्या की है। ऐसी व्याख्या का व्यावहारिक और वास्तविक मूल्य सामाजिक दृष्टि से घृणित और हेय है । उनके सिद्धान्त ने जिस रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की है वह अनाकर्षक है । सिनिक सिद्धान्त के नाम के साथ प्रकृति के प्रति आकर्षण, लोकमत की उपेक्षा, वैयक्तिक प्रतिष्ठा की कमी तथा सजातीयों के प्रति घृणा प्रसिद्ध हो गये हैं। इसमें सन्देह नहीं कि जिन उच्च मान्यताओं को लेकर वे प्रारम्भ में चले, अन्त में उनका उतना ही कुत्सित रूप उन्होंने सम्मुख रखा। व्यवहार में सिनिक्स अत्यन्त असामाजिक और अव्यावहारिक हो गये। उन्होंने कलाशून्यता, रूढ़ि-विरोध, अहन्ता, विद्वेषभाव और कुत्सित व्यवहार को अपना लिया। किन्तु फिर भी उनके सिद्धान्त की नैतिक दर्शन को एक देन है । उसने सर्वप्रथम यूनानियों में उस प्रवृत्ति को दार्शनिक अभिव्यक्ति दी जो बुद्धिमय जीवन को ही बौद्धिक प्राणी के योग्य मानती है और इन्द्रियों को आत्मा के फंसाने के लिए फन्दा मानती है। सिनिक सिद्धान्त वैराग्यवाद का प्रथम और अत्यधिक उग्र रूप है। स्टोइक्स स्टोइक सिद्धान्त के प्रचारक जीनो' ने अपना भाषण देने के लिए एथेन्स में एक पाठशाला खोली। इसके लिए उसने जिस बरसाती को किराये पर लिया वह रंगीन बरसाती के नाम से पुकारी गयी । स्टोइक (Stoic) शब्द स्टोए (Stoa) शब्द से उद्भूत किया गया। जीनो के शिष्य 'स्टोए के लोग' अथवा स्टोइक्स कहलाये । इस सिद्धान्त का प्रचार कर इसको प्रसिद्धि क्रिसिपस ने दी। क्रिसिपस जीनों का शिष्य था। 1. Zeno.३४०-२६५ ई० पू०। । 2. Stoa Poikile. 3. Stoics. 4. Chrysippus २८०-२०६ ई० पू० । बुद्धिपरतावाद / २०६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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