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________________ - विश्वनागरिकतावाद स्वार्थवाद है--सिनिक्स ने विश्वनागरिकतावाद (Cosmopolitanism) की नींव डाली । उनके अनुसार नियम ही नैतिकता का मानदण्ड है, यह नियम बुद्धि देती है और यह बौद्धिक नियम सार्वभौम है। सिनिक साधु केवल विवेकजन्य नियमों को अनिवार्य मानता है और उन्हीं के अनुरूप कर्म करता है । विवेकजन्य नियम सब बौद्धिक प्राणियों के लिए समान रूप से अनिवार्य हैं । यदि सब व्यक्ति विवेकी हो जायें तो राजनीतिक नियमों और राष्ट्रीय भेदों का कोई मूल्य नहीं रह जायेगा । स्वामी-सेवक, स्त्री-पुरुष, एक राष्ट्र और दूसरे राष्ट्र आदि के भेद टूटकर विश्वराष्ट्र की स्थापना हो जायेगी और सब एक ही सार्वभौम नियम (विवेकदृष्टि द्वारा दिये हुए) का पालन करेंगे। ऐसे नियम का पालन करनेवाला प्रत्येक व्यक्ति स्वतन्त्र एवं आत्मनिर्भर है। किन्तु सिनिक्स का विश्वनागरिकतावाद व्यवहार में इस सिद्धान्त से बहुत दूर है । वह शुद्ध स्वार्थवाद को मानता है। विश्व का नागरिक' अपने आचरण में अपने सामाजिक सम्बन्ध को भूल जाता है। व्यक्तिगत आत्मनिर्भरता को अत्यधिक महत्त्व देने के कारण वे विश्ववाद को नहीं समझा पाये। वह व्यक्ति, जो कि अपने सजातीयों से घृणा करता है, विश्व-ऐक्य अथवा विश्व-प्रेम के गीत कैसे गा सकता है ? प्रभावात्मक पक्ष प्रमुख है-सिनिक सिद्धान्त के दो रूप हैं : भावात्मक और अभावात्मक । इस सिद्धान्त के प्रारम्भिक विचारकों ने अपने समय की भावात्मक (यथार्थ) नैतिकता को स्वीकार किया। प्रचलित व्यावहारिक सद्गुणों-न्याय, संयम आदि-को अपने-आपमें शुभ माना। सिनिक्स के अभावात्मक रूप की प्रचण्डता ने उनके सिद्धान्त के भावात्मक पक्ष को अप्रमुख बना दिया। फलत: जनता के सम्मुख उनके सिद्धान्त का प्रस्फुटन प्रभावात्मक रूप में हुआ। नैतिकता को स्पष्ट रूप से समझाने के बदले, नैतिक नियमों को पुष्ट अथवा दोषमुक्त करने के बदले वह विद्वेषी, प्रहन्तावादी और असामाजिक हो गया । सिनिक्स का आत्मसंयम का सिद्धान्त कठोर वैराग्यवाद पर आधारित है । सद्गुण को जीवन का ध्येय बतलाते हुए सिनिक्स ने जीवन के अभावात्मक पक्ष को महत्त्व दिया। उनके अनुसार बौद्धिक व्यक्ति सुख-दुःख की भावना से अछूता है। उसे जीवन-भर शारीरिक और मानसिक कष्ट उठाने चाहिए। अकीर्ति, दरिद्रता और कठोर परिश्रम नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होते हैं। अनुराग, आसक्ति, भावना या तीव्र भावना पाप हैं, वे बीमारी के सदृश हैं, उनका दमन अनिवार्य होना चाहिए। सद्गुणी व्यक्ति २०८/नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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