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________________ स्टोइक्स ने सिनिक सिद्धान्त 'सद्गुण ही परम शुभ है' को संवर्धित और विकसित किया । वास्तव में सिनिक सिद्धान्त दो दिशाओं में विकसित हुना। उसकी एक शाखा परम स्वार्थवाद की ओर बढ़ी और दूसरी स्टोइसिज्म की ओर । स्टोइक्स ने आत्मनिर्भरता का अर्थ अविचल रूप से उन कर्तव्यों का पालन माना जो स्वभावतः व्यक्ति की सामाजिक और विश्वजनित स्थिति से उत्पन्न होते हैं। इन दोनों सिद्धान्तों के मूल में आत्मा के सन्दिग्ध अर्थ हैं। स्वार्थवादियों ने प्रात्मा को असम्बद्ध इकाई माना और स्टोइक्स ने उसकी सामाजिक एकता को महत्त्व दिया। सद्गुण-सिनिक्स की भाँति स्टोइक्स ने भी सद्गुण को परम शुभ कहा है। सिनिक्स ने इस कथन के अभावात्मक पक्ष को ही समझाया। सद्गुण का अर्थ उन्होंने प्रचलित नियमों और लोकरीतियों को न मानना लिया। स्टोइक्स ने इसकी भावात्मक व्याख्या करते हुए कहा कि वह अपने-आपमें संगतिपूर्ण तथा प्रकृति के अनुरूप जीवन है। सिनिक्स के अनुसार विवेकी व्यक्ति के लिए कुछ भी असामान्य नहीं है। उसे लोकरीतियों की परवाह नहीं करनी चाहिए और भौतिक आवश्यकताओं को न्यूनतम कर देना चाहिए। स्टोइक्स ने सिनिक्स के ऐसे दष्टिकोण को दार्शनिक जीवन और सामाजिक जीवन के विभाजन द्वारा समझाया। उन्होंने यह बतलाया कि सिनिक्स का कथन दार्शनिक ध्येय और सामान्य एवं निम्न इच्छाओं के विरोध को समझाता है। आचरण की ऐसी रीति अनिवार्य रीति नहीं है, किन्तु वह यह इंगित करती है कि वैरागी साधु विशिष्ट परिस्थितियों में इस रीति को अपना सकता है। सिनिक्स का लोकरीतियों के प्रति विद्वेषात्मक भाव था। स्टोइक्स ने इसको कर्तव्य के यथार्थ नियमों में परिवर्तित कर दिया। उनका कहना था कि विश्व जीवन्त बौद्धिक पूर्णता (living rational whole) है और मानव-आचरण उसका सूक्ष्म दर्शन है। विवेक का अर्थ प्रकृति की अगाध चेतना के साथ संगति है। 'जो कुछ भी प्राकृतिक है वह शुभ है', मनुष्य को केवल प्रकृति के अनुरूप रहना चाहिए। स्टोइक्स दो प्रकार के जीवन मानते हैं-प्रकृति के अनुसार और बुद्धि के अनुसार । दोनों ही परस्पर निर्भर हैं। दोनों एक-दूसरे के अनुकूल हैं । प्रकृति के अनुसार जीवन इन्द्रियपरक जीवन है। वह मनुष्य और पशु का सामान्य जीवन है । उसमें व्यवस्था और नियम है। उसके कर्म अनायास और सहज प्रेरित हैं । वह अपने-आपमें न शुभ है, न अशुभ । किन्तु यदि यह पूछा जाये कि आचरण पर नैतिक निर्णय कैसे देते हैं, अथवा जीवन में नैतिकता २१० / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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