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________________ एक-दूसरे पर अधिकाधिक निर्भर होते जा रहे है। मनुष्य की इच्छानों और आकांक्षाओं की वृद्धि के साथ सामंजस्य भत्यन्त कठिन और दुरूह होता जा रहा है । इस दुरूहता के साथ ही वह युगपत् रूप से, दिन-प्रतिदिन, वातावरण पर अधिकाधिक निर्भर होता जा रहा है। विकास यह भी बतलाता है कि उसका 'पद्धतिक्रम अपूर्ण सामंजस्य से पूर्ण सामंजस्य की ओर है । सीधी, सरल भावनाओं से क्रम-विकास द्वारा अत्यन्त जटिल भावनाओं तक पहुंचना अर्थात् पूर्ण विकसित नैतिक भावनाओं का विकास ही इसका ध्येय है। भावनाओं की पूर्ण विकसित स्थिति में बाध्यता की भावना, कर्तव्य की चेतना सहज-प्रवृत्ति का रूप ग्रहण कर लेती है। यह नैतिक पूर्णता (moral perfection) की स्थिति है। नैतिकता का विकास मनुष्य और वातावरण के बीच पूर्ण सामंजस्य स्थापित कर देगा। नैतिकता 'वह रूप है जिसे सार्वभौम आचरण अपने विकास की अन्तिम स्थितियों में प्राप्त करता है।' नैतिक पूर्णता की स्थिति में व्यक्ति और वातावरण के बीच पूर्ण सामंजस्य स्थापित हो जायेमा तथा जीवन-संरक्षण के लिए व्यापक और स्वस्थ वातावरण उपस्थित हो जायेगा। . सापेक्ष और निरपेक्ष नीतिशास्त्र-स्पेंसर ने पूर्ण सामंजस्य और अपूर्ण सामंजस्य की स्थितियों के आधार पर दो प्रकार के नीतिशास्त्रों को माना है। विकास के पद्धतिक्रम में मध्य की स्थिति अपूर्ण सामंजस्य की स्थिति है। इसमें दुःखरहित सुख की प्राप्ति सम्भव नहीं है। इस स्थिति के लिए आचरण के नियमों का प्रतिपादन सापेक्ष नीतिशास्त्र (relative ethics) करता है । वास्तव में यह स्थूल और अनुभवात्मक रूप से निर्धारित करता है कि निरपेक्ष नीतिशास्त्र (absolute ethics) के नियमों को मानव-प्राणियों की वर्तमान स्थिति से कैसे सम्बद्ध किया जा सकता है। जहां तक निरपेक्ष नीतिशास्त्र प्रश्न है, उसके नियम उस पूर्ण विकसित समाज के लिए हैं जो कि स्थायी सन्तुलन (stable equilibrium) प्राप्त कर चुका है । इस समाज का मानवपूर्ण रूप से संयोजित मानव है। यहाँ न तो दुःख के लिए स्थान है और न किसी प्रकार के विरोध के लिए । ऐसा पाचरण, जिसका परिणाम अमिश्रित एवं शुद्ध सुख है, पूर्ण रूप से उचित है। उचित पाचरणवाला व्यक्ति सहानुभूतिमूलक कर्मों और नैतिक कर्तव्य को स्वाभाविक तथा अनायास रूप से करेगा। वह सद्गुणों को प्रात्मसात् कर लेगा। २६० / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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