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________________ लेस्ली स्टीफेन लैस्ली स्टीफेन' ने स्पेंसर के विकासात्मक सुखवाद को अपनी विशेषताएँ रखते हुए अपनाया। इनकी सबसे प्रमुख विशेषता अथवा स्पेंसर के सिद्धान्त को महत्त्वपूर्ण देन समाज की जीव-रचना एवं अंगी (organism) की धारणा है । इसमें सन्देह नहीं कि स्पेंसर ने इस विचारधारा की नींव डाली, किन्तु उसकी नींव कच्ची और खोखली है। उसे इस धारणा का संस्थापक कहना उचित नहीं होगा । 'जीव - रचना' के प्रयोग द्वारा वह व्यक्ति और समाज के सम्बन्ध का व्यापक और यथार्थ चित्र नहीं खींचता, किन्तु उसे अधिकतर रुचिकर सादृश्य या रूपक के रूप में लेता है । स्टीफेन उसे निश्चित रूप से मुख्य नैतिक तत्त्व मानता है । उसका कहना है कि सत्य का पूर्ण दर्शन यह बतलाता है कि समाज समुदाय मात्र नहीं है, जीव-रचना का विकास है । व्यक्ति और जाति का अध्ययन यह बतलाता है कि व्यक्ति एकाकी अणु की भाँति नहीं रह सकता । वह उसी भाँति समाज पर निर्भर है जैसे कि अवयव देह पर हैं । व्यक्ति को सदैव समाज के ही सम्बन्ध में समझ सकते हैं । उसकी इच्छात्रों, आकांक्षाओं की तृप्ति समाज में ही सम्भव है । जो कुछ भी वह है, समाज के कारण है । समाज की पूर्व स्थिति से प्रानुवंशिकता के रूप में उसने अपनी मौलिक प्रवृत्तियों और स्वाभाविक प्रकृति को पाया है । उसका बौद्धिक और मानसिक व्यक्तित्व उसे समाज की देन है । उसके व्यक्तित्व का निर्माण सामाजिक संस्थानों, भाषा, शिक्षा एवं वातावरण पर निर्भर है । अथवा समाज एक जीव- रचना की भाँति है जिस पर उसके व्यक्तिरूपी अवयव परस्पर निर्भर हैं; बिना समाज के वे नहीं रह सकते । ये समाज से संयोजित होने का निरन्तर प्रयास करते रहते हैं सामाजिक तन्तु (social tissue) का क्रमशः अनेक प्रकार से सुधार हो रहा है ताकि उसके अवयव अधिक पूर्णता से संयोजित होकर जीव-रचना के विभिन्न व्यापारों को समष्टि रूप से परिपूर्ण कर सकें । सामाजिक रचना की गति का ध्येय सामाजिक ‘प्रकार' (social 'type') का विकास है । प्रथवा उस प्रकार के समाज को उत्पन्न करना है जो कि सामाजिक जीवन में दिये हुए साधन और साध्य की अधिकतम कार्यक्षमता ( efficiency) का प्रतिनिधि हो सके । नैतिक ध्येय : स्वास्थ्य — समाज के स्वरूप को जैव रूप से समझने के पश्चात् लेस्ली स्टीफेन कहता है कि जीवन के ध्येय का वैज्ञानिक मानदण्ड 1. Leslie Stephen. Jain Education International विकासवादी सुखवाद / १९१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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