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________________ का ध्येय तीत्र एवं अधिक परिमाण से सुख का भोग नहीं, श्रेष्ठ है। सुख मिल का 'गुणात्मक भेद' मख को एकमात्र शुभ नहीं मानता । वह उत्पादक के स्वरूप को महत्त्व देता है। सुख की वांछनीयता उसकी श्रेष्ठता पर निर्भर है, उस श्रेष्ठता अथवा गुण को निर्णायक समिति निर्धारित करती है। मिल के विरुद्ध अनायास ही यह प्रश्न उठता है-क्या प्रमाण है कि निर्णायक समिति के सब सदस्यों का निर्णय अभिन्न होगा ? अधिकतर यह देखा गया है कि योग्य और मर्मग्राही आलोचकों का काव्य की श्रेष्ठता के बारे में एकमत नहीं होता है। सुखवाद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के सुख का मापदण्ड उसके सुख की तीव्रता है। उच्च प्रवृत्ति के मनुष्य के लिए उच्च सुख और निम्न प्रवृत्ति के व्यक्ति के लिए निम्न सुख अधिक तीव्र एवं वांछनीय है। यह कहना असुखवादी है कि उच्च सुख ही वांछनीय है । प्रत्येक मनुष्य की प्रवृत्ति के अनुरूप ही उसके सुख का स्वरूप होता है । निम्न श्रेणी के अर्थात् इन्द्रिय पर व्यक्तियों के सुख के चुनाव को मिल अनुभवहीनता और प्रज्ञान का चुनाव कहकर अपने विरुद्ध आक्षेपों से अपने को मुक्त करने का प्रयास करता है। किन्तु यह तर्क सुखवाद के क्षेत्रों में मान्य नहीं है । मिल के 'योग्य न्यायाधीशों को ही सुख के मूल्यांकन करने का एकमात्र अधिकारी नहीं कहा जा सकता। यदि सुख एकमात्र ध्येय है तो निम्न प्रवृत्ति के व्यक्ति से अधिक तीव्र एवं अधिक परिमाण के सुख का त्याग करके कम तीव्र सख को चनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। उनसे परिमाण का त्याग करके गुण स्वीकार करने को नहीं कहा जा सकता। गुणात्मक भेद को मानने के लिए उसे परिमाण में परिणत करना आवश्यक है। अथवा “यदि सुखवाद के सिद्धान्त के साथ यह भी स्वीकार करें कि भावनाओं में गुणात्मक भेद होता है और उस भेद को परिमाण में परिणत नहीं किया जा सकता तो यह सापेक्षतः सुख की उच्च और निम्न श्रेणियों को स्वीकार करना होगा जिसका कि अधिक या कम सूख की मान्यताओं से कोई सम्बन्ध नहीं है।"१ "गुण सुखवादी मापदण्डं के बाहर है, सुखवादी मापदण्ड केवल परिमाण या राशि है।"२ गुणात्मक भेद को स्वीकार करना सुखवाद का अप्रत्यक्ष रूप से त्यागकर एक नवीन मापदण्ड को मानना है। यह मापदण्ड गुण या श्रेष्ठता का मापदण्ड है, सुख का नहीं । मिल ने इस नवीन मापदण्ड को मानकर सुखवादी परिमाण को, अर्थात् 1. Muirhead. 2. Seth. सुखवाद (परिशेष) | १५७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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