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-बेंथम के 'नैतिक गणित' को, व्यर्थ कर दिया । सुखवाद को स्पष्ट रूप से मानते हुए भी उसे बौद्धिक रूप से निकृष्ट कह दिया । 'योग्य न्यायाधीशों के निर्णय' के साथ ही मिल 'गौरव के बोध' (sense of dignity ) की ओर ध्यान आकृष्ट करता है । यह मनुष्य के लिए स्वाभाविक है । यह जिनमें प्रबल होता है उनका सुख मुख्यत: इसी पर निर्भर होता है। गौरव के बोध को सुख की इच्छा के रूप में नहीं समझाया जा सकता । यह वह चेतना है जो मनुष्य को बतलाती है कि वह श्रेष्ठ प्राणी है और उस श्रेष्ठता के अनुरूप उसकी इच्छात्रों और सुख की भावना को संयमित करती है । यह मनुष्य की बौद्धिक आत्मा की पुकार है। बिना इसे सन्तुष्ट किये उसे जीवन में शान्ति श्रौर तृप्ति प्राप्त नहीं हो सकती । मनुष्य उन कर्मों को करना चाहता है जो 'मानव-गौरव' के योग्य और बौद्धिक आत्मा के लिए वांछनीय हैं। वह केवल सुख के लिए सुख नहीं चाहता है । सुख अपने-आपमें उच्च या निम्न नहीं है । वह अपने प्राप में गुणहीन है । मनुष्य की बौद्धिक मांग ही उसके गुण को निर्धारित करती है । बौद्धिक श्रात्मा की तृप्ति की पूर्णता अथवा अपूर्णता के अनुरूप ही वह उच्च और निम्न है । अतः मनुष्यत्व के 'गौरव का बोध' मनुष्य की बौद्धिक श्रेष्ठता का सूचक है, न कि सुख की इच्छा का । बुद्धि इतनी प्रभावशाली और महान् है कि मनुष्य उसका मान रखने के लिए, बौद्धिक शान्ति की प्राप्ति के निमित्त इन्द्रिय-सुखों का त्याग करता है । मनुष्य के जीवन का ऐसा अध्ययन अथवा उसका बौद्धिक मूल्य निरूपण सुखवाद को सह्य नहीं है । यह इन्द्रियपरक सुखवाद को स्खलित कर देता है ।
मिल की सफलता और असफलता — मिल ने उपयोगितावाद को 'शूकर-दर्शन' के प्रक्षेप से मुक्त करना चाहा । उसने सुख में गुणात्मक भेद माने । 'सुख का गुणात्मक भेद' निःसन्देह मिल के सिद्धान्त को श्रेष्ठता और नवीनता प्रदान करता है और साथ ही उसके सिद्धान्त को बेंथम के सिद्धान्त से भिन्न कर देता है । मिल का गुणात्मक भेद ऍपिक्यूरस के सिद्धान्त की याद दिलाता है । तुलनात्मक दृष्टि से मिल का सिद्धान्त अधिक संयत और श्रेष्ठ है । ऍपिक्यूरस के मानसिक अथवा बौद्धिक सुख का सिद्धान्त अपने-आपमें श्रेष्ठ नहीं है । दीर्घकालीनता और तीव्रता ( अधिक परिमाण) उसकी वांछनीयता के कारण हैं । मिल से पूर्व के सभी सुखवादियों (ऍरिस्टिपस, ऍपिक्यूरस, पैले, आदि) ने सब प्रकार के सुखों को समान कहा है । सुख की वांछनीयता परिमाण पर निर्भर है । मिल परिमाणात्मक भेद के साथ ही गुणात्मक भेद को
*२५८ / नीतिशास्त्र
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