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________________ दो रूप हैं । I सिद्धान्त की विशिष्टता - स्वार्थवादी नैतिकता का प्रचारक होने के कारण - हॉब्स ने कर्तव्य, बाध्यता, सद्गुण आदि को व्यक्ति के सुख-दुःख से सम्बन्धित माना है । अपने सिद्धान्त के प्रतिपादन के लिए उसने समय से प्रभावित होकर जिस तार्किक और वैज्ञानिक प्रणाली को अपनाया वह स्तुत्य है । उसकी प्रणाली की स्पष्टता, दृढ़ता और विधि ने उसके उठाये हुए प्रश्नों को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बना दिया। हॉब्स ने अपने तर्कों को जिस युक्ति से सम्मुख रखा उसने उसके परमार्थ अथवा सामाजिक सुख के प्रश्न को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बना दिया 1 इंगलैण्ड में उसने स्वतन्त्र नैतिक सिद्धान्त को जन्म दिया । शैफ्ट्सबरी, बटलर प्रादि सहजज्ञानवादियों के सिद्धान्त की प्रेरणाशक्ति हॉब्स का परमस्वार्थवाद ही है । परार्थ सुखवाद : उपयोगितावाद सामान्य परिचय - - परार्थ सुखवाद या परसुखवाद सामाजिक सुख में 'विश्वास करता है । सामाजिक सुख को नैतिक ध्येय मानने के कारण परसुखवाद ने सुखवाद को व्यापक, महान् और जनप्रिय बना दिया। प्राचीन सुखवाद के साथ उसने स्वीकार किया कि मनुष्य स्वभावत: सुख की खोज करता है, वह स्वार्थी है । सुखेच्छा ही मनुष्य के कर्मों का वास्तविक और अनिवार्य कारण है । मनुष्य की इस स्वाभाविक प्रवृत्ति को परसुखवादियों ने जनसामान्य के हित का साधन बनाया और मनोवैज्ञानिक सुखवाद को ही नैतिक सुखवाद एवं परार्थमूलक सुखवाद का आधार माना । उन्होंने कहा कि मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति सुखेच्छा - नैतिक लक्ष्य को निर्धारित करती हैं। सुख ही नैतिक लक्ष्य है । श्रतः प्रत्येक व्यक्ति को सुख प्राप्त करने का अधिकार है। दूसरे शब्दों में जीवन का ध्येय वैयक्तिक सुख नहीं है किन्तु अधिकतम संख्या का सुख है । मनोवैज्ञानिक सुखवाद के द्वारा उन्होंने सामूहिक सुखवाद की स्थापना की और सुखवाद का मानव कल्याण के साथ समन्वय स्थापित किया । अपने. मानवतावादी रूप में सुखवाद विकसित और गौरवान्वित अवश्य हो गया किन्तु इस रूप में वह प्राचीन सुखवाद से बहुत दूर पहुँच गया । परार्थ सुखवाद के प्रमुख प्रवर्तक - इस सिद्धान्त के प्रमुख प्रतिपादक बेंथम और मिल जड़वादी विचारधारा के माननेवाले समाज सुधारक थे। जड़वादी होने के कारण उन्होंने सांसारिक सुख को ही जीवन का ध्येय माना । सुख के १४० / नीतिशास्त्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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