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________________ प्राध्यात्मिक या धार्मिक पक्ष को समझने का प्रयास उन्होंने नहीं किया। मनुष्य को स्वार्थी मानते हुए उन्होंने कहा कि सामान्य सुख की वृद्धि करना नैतिक जीवन का लक्ष्य है; सामाजिक शुभ के लिए उपयोगी कर्म शुभ हैं। परसुखवाद का मापदण्ड प्राचीन सुखवादी मापदण्ड से भिन्न है। जनहित को अपनाकर वास्तव में वह सुखवाद को छोड़ देता है। परसुखवाद विश्व को जनहित का सक्रिय सन्देश देता है और प्राचीन सुखवाद ने स्थूल इन्द्रियप्रियता का सन्देश दिया है। यहीं व्यावहारिक दृष्टि से दोनों में महान् अन्तर आ जाता है। प्रारम्भिक सुखवादी विशेषकर ऍपिक्यूरस के अनुसार सामाजिक सुख, सामाजिक कल्याण, सामाजिक संस्थानों को उन्नत करने की भावना घृणित है। परसुखवादियों ने यह समझाने का प्रयास किया कि जनहित को ध्यान में रखकर विभिन्न नियमों का प्रतिपादन करना चाहिए, सामाजिक तथा शिक्षा सम्बन्धी संस्थानों की रूपरेखा निर्धारित करनी चाहिए। अपने उस उन्नत रूप में सुखवाद आधुनिक राजनीतिक, सामाजिक, व्यावसायिक, कानूनी और शिक्षा . सम्बन्धी संस्थानों के विकास में सहायक हुमा, इसमें कोई सन्देह नहीं है। किन्तुः परसुखवादियों के विरुद्ध यह मुख्य आपत्ति है कि वे वैयक्तिक और सामाजिक सुख में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाये। वैसे, जहाँ तक सुखवाद का प्रश्न है, उसके क्षेत्र का अतिक्रमण करके ही उन्हें सफलता मिली। . बैंथम सुख ही एकमात्र वांछनीय ध्येय : नैतिक-मनोवैज्ञानिक सुखवाद का समन्वय-बैंथम के अनुसार "प्रकृति ने मनुष्य को दो प्रमुख शक्तियों-सुख और दुःख–के अनुशासन में रखा है। इन्हीं के द्वारा यह निर्धारित होता है कि हमें क्या करना चाहिए और हम क्या करेंगे।" इस प्रकार वह अपनी पुस्तक का प्रारम्भ नैतिक और मनोवैज्ञानिक सुखवाद के समन्वय से करता है। इन समन्वय के द्वारा वह यह कहता है कि मनुष्य के कर्म सदैव सुख की इच्छा से संचालित होते हैं और सुख ही एकमात्र नैतिक आदर्श है। बैंथम का यह सिद्धान्त उन्हीं कर्मों का अनुमोदन करता है जो कि सुखप्रद हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह इस तथ्य पर प्राधारित है कि मनुष्य वैयक्तिक सुख की खोज 1. Jeremy Bentham 1748-1832. 2. Principles of Morals and Legislation. सुखवाद (परिशेष) | १४१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004082
Book TitleNitishastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanti Joshi
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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