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________________ ५००/११२३ षड्. समु. भाग-२, परिशिष्ट-३, जैनदर्शन में नयवाद है, शरीर भी किसी अन्य द्रव्य के निकल जाने पर चेतना और सुख आदि से शून्य हो जाता है । शरीर के अन्दर प्रवेश करनेवाला और बाहर जानेवाला द्रव्य आत्मा है, ज्ञान सुख आदि उसके गुण हैं । परीक्षकों के प्रमाणों पर आश्रित होने पर भी आत्मा आदि के व्यवहार को चार्वाक अयुक्त मानता है इसलिए उसका मत व्यवहाराभास है । ऋजुसूत्राभास : वर्तमानपर्यायाभ्युपगन्ता सर्वथा द्रव्यापलापी ऋजुसूत्राभास: (96) यथा तथागतं मतम् । अर्थ : वर्तमान काल के पर्याय को स्वीकार करनेवाला और द्रव्य का सर्वथा निषेध करनेवाला अभिप्राय ऋजुसूत्राभास है, जिस प्रकार बौद्ध मत । अर्थो का सम्बन्ध तीन कालों के साथ अनुभव से सिद्ध है । जिस अर्थ का ज्ञान अभी होता है वह वर्तमान काल के पीछे भी प्रतीत होता है । ज्ञाता समझता है, पहले देखा था इसलिए यह अर्थ भूतकाल में था । अब देख रहा हूँ इसलिए वर्तमानकाल में भी है । इसके अनन्तर भी दिखाई देता है इसलिए भावीकाल के साथ भी इसका सम्बन्ध है । अत: कालों के भिन्न होने पर भी अर्थ एक है । जब अर्थ नष्ट हो जाता है तब नहीं दिखाई देता । जो अर्थ नहीं दिखाई देता उसका भी कोई अंश रहता हैं । कोई भी भावात्मक अर्थ किसी भी दशा में सर्वथा शून्य नहीं हो जाता । पहले मिट्टी का पिंड होता है पीछे ईंटे उत्पन्न होती है । ईंटों से भवन उत्पन्न होता है । ईंट का जब प्रत्यक्ष होता है तब ईंट मिट्टी के होती है । जब भवन दिखाई देता है तब भवन के साथ भी मिट्टी दिखाई देती है । जब केवल मिट्टी होती है तब न ईंट होती है और न भवन । भवन का यदि नाश हो जाय तो भी मिट्टी का प्रत्यक्ष भस्म के रूप में होता है । ईंट-भवन और भस्म का प्रत्यक्ष सदा नहीं होगा, किन्तु मिट्टी का प्रत्यक्ष इन सब अवस्थाओं में होता है। जिसका प्रत्यक्ष सब अवस्थाओं में है वह अनुगत है और अनुगत रूप से न रहनेवाले पर्यायों से भिन्न भी है । पर्याय इस अनुगत अर्थ के बिना नहीं प्रतीत होते इसलिए पर्याय अनुगत अर्थ से अभिन्न भी हैं । इस प्रकार द्रव्य और पर्याय दोनों का ज्ञान होता है । पर्यायों को उत्पन्न और नष्ट होने पर भी अनुगतद्रव्य रूप अर्थ की स्थिति रहती है । अनुगत रूप से रहने के कारण द्रव्य अक्षणिक है और पर्यायों के साथ अभेद के होने के कारण क्षणिक है। इस प्रकार द्रव्य क्षणिक भी है और अक्षणिक भी । इसी प्रकार पानी में जब वर्षा की बूंदों के कारण बूद-बूद उत्पन्न होते हैं तब पहला बुद-बुद नष्ट होता है और दूसरा बुद-बुद उत्पन्न होता है । जब तक वर्षा वेग से होती रहती है तब तक बुद-बुद उत्पन्न और नष्ट होते रहते हैं । जब वर्षा बन्द हो जाती है तब बुद-बुद की उत्पत्ति नहीं होती, केवल पानी रह जाता है । पहले पानी रहता है, जब बुद-बुद होते हैं तब भी पानी रहता है और जब बुद-बुद नष्ट हो जाते हैं तब भी पानी रहता है । बुद-बुद पर्याय हैं और पानी द्रव्य है, इस प्रकार के पर्याय द्रव्य के आकार से कभी अल्प अंश में और कभी अधिक अंश में भिन्न होते है । आकार में भेद होने पर भी द्रव्य के साथ उनका अभेद रहता है । पर्याय कभी द्रव्य से सर्वथा शून्य नहीं हो सकते । द्रव्य का सूक्ष्म पर्याय स्थूल पर्यायों के समान न दिखाई देने पर भी द्रव्य में होता रहता है । इस प्रकार के पर्याय इन्द्रियों से अगम्य भी होते हैं । इन सूक्ष्म पर्यायों के बिना द्रव्य कभी नहीं रहता, इसलिए वस्तु का स्वभाव द्रव्यात्मक और पर्यायात्मक है। 96. ऋजुसूत्राभासं ब्रुवते - सर्वथा द्रव्यापलापी तदाभासः ।।७-३०।। यथा-तथागतमतम् ।।७-३१।। य: पर्यायानेव स्वीकृत्य सर्वथा द्रव्यमपलपति सोऽभिप्रायविशेष ऋजुसूत्राऽऽभास इत्यर्थः ।।३०।। तथागतमतम्-बौद्धमतम् । बौद्धो हि प्रतिक्षणविनश्वरान् पर्यायानेव पारमार्थिकत्वेनाभ्युपगच्छति, प्रत्यभिज्ञादिप्रमाणसिद्धं त्रिकालस्थायि तदाधारभूतं द्रव्यं तु तिरस्कुरुते इत्येतन्मतमजसूत्राभासत्वेनोपन्यस्तम् ।।३१।। (प्र.न.तत्त्वा.) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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