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________________ षड्. समु. भाग-२, परिशिष्ट-३, जैनदर्शन में नयवाद ४७५/१०९८ प्रश्न : सिद्धान्तवादी आचार्यो के मतानुसार तो उपरोक्त अर्थ अनुसार द्रव्यांशग्राही वर्तमानकाल को माननेवाला ऋजुसूत्रनय होने से अनुयोग द्वार सूत्र का पाठ संगत हुआ । परन्तु तर्कवादी आचार्यो के मतानुसार इस पाठ का जो विरोध आता है, उसका परिहार कैसे करोंगे । उत्तर : महोपाध्यायजी श्री यशोविजयजी म. उस विरोध का परिहार करते हुए बताते हैं कि - "अनुपयोगद्रव्यांशमेव सूत्रपरिभाषितमादायोक्तसूत्रं तार्किकमतेनोपपादनीयम्, इत्यस्मदेकशीलितः पन्थाः" जैन शास्त्रो में "द्रव्यांश" शब्द के अनेक अर्थ कहे हैं । यहाँ टबे में तथा विवेचन में द्रव्यांश शब्द के उपर जो तीन अर्थ पहले बताये । १. वर्तमानकाल के पर्याय को धारण करनेवाला ऐसा द्रव्यांश २. उर्ध्वता सामान्यरूप ऐसा द्रव्यांश और तिर्यक् सामान्यरूप ऐसा द्रव्यांश, इन तीनो में से कोई भी अर्थवाला द्रव्यांश यहाँ तार्किको के मतानुसार नहीं होता हैं। इसलिए तार्किको के मतानुसार अनुयोगद्वार सूत्र का पाठ संगत करने के लिए "द्रव्यांश" शब्द का चौथा अर्थ करे । "उपयोग बिनाकी जो क्रिया" उसे भी द्रव्य कहा जाता हैं । ये अर्थवाला द्रव्यांश शब्द अनुयोगद्वार के सूत्रपाठ में हैं। इस प्रकार लेकर उपरोक्त सूत्र तार्किको के मतानुसार संगत करे । सारांश कि, तार्किको के मतानुसार प्रतिक्षण का पर्याय या कुछ दीर्घवर्तमानकाल का पर्याय ही ऋजुसूत्रनय के मतानुसार लेना हैं । परन्तु उस पर्यायकाल में उपयोगदशा न होने से अनुपयोगो द्रव्यम् - इस न्याय के अनुसार उस पर्याय को ही अनुपयोग दशारूप में "द्रव्य" रूप समजना । जिससे यहाँ द्रव्य का अर्थ पदार्थ अथवा छ: द्रव्यो में से एक द्रव्य ऐसा अर्थ न करते हए, पर्याय ही लेना और वही पर्याय उपयोगशून्य होने से द्रव्यात्मक हैं । इस प्रकार धर्म संबंधित जो जो आवश्यक क्रिया करे परन्तु वह क्रिया उपयोग की शून्यता से है । ऐसे प्रकार का आशय सूत्र में कहा हुआ है । ऐसा समजकर उपर का सूत्र तार्किक आचार्यो के मतानुसार संगत करना चाहिए, इस प्रकार हमारे द्वारा विचार में आया हुआ एक मार्ग हैं । ऋजुसूत्र नय के प्रकार : सूक्ष्मऋजुसूत्रो यथा - एकसमयावस्थायीपर्यायः । स्थूलऋजुसूत्रो यथा मनुष्यादिपर्यायाः तदायुःप्रमाणं तिष्ठति ।(67) ऋजुसूत्रनय के दो प्रकार हैं । (१) सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय और (२) स्थूल ऋजुसूत्रनय । सूक्ष्मऋजुसूत्रनय एक समय रहनेवाले पर्याय को स्वीकार करता है । अर्थात् प्रत्येक पदार्थ के प्रतिसमय जो जो पर्याय होते है उस समय मात्र ही रहनेवाले होने से और समय यह अत्यंत सूक्ष्म वर्तमानकाल होने से वही पर्याय सत् है । कोई भी पर्याय एक समय से ज्यादा रहता नहीं है । दूसरे ही समय वह पर्याय असत् बनते है - इस तरह से सूक्ष्मऋजुसूत्र नय मानता है । परन्तु जो स्थूलत्रजुसूत्र नय है, वह मनुष्यादि कुछ दीर्घवर्तमानकालवर्ती पर्याय को मानता है । यह नय भी वर्तमान काल को ही मानता हैं । परन्तु दीर्घवर्तमानकालवर्ती पर्याय को वर्तमानरुप होने से मान्य रखता हैं । ___ यहाँ प्रश्न हो सकता है कि, स्थूलऋजुसूत्रनय और व्यवहारनय के लक्षण में मिश्रण हो जायेगा, क्योंकि दोनों के विषय समान ही हैं । तो इसका उत्तर यह हैं कि, दोनों के विषय समान नहीं है । क्योंकि, स्थूलऋजुसूत्रनय दीर्घ ऐसे भी वर्तमानकाल को ही मान्य रखता हैं, परन्तु भूत-भावि पर्याय को नहीं । जब कि, व्यवहारनय त्रिकालवर्ती पर्याय को मानता हैं । निकट के भूत-भावि को भी मान्य रखता हैं । इस तरह दोनों में भेद हैं । 67.नयप्रकाशस्तव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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