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________________ ४७४/१०९७ षड्. समु. भाग-२, परिशिष्ट-३, जैनदर्शन में नयवाद प्रकार हैं - "ऋजुसूत्रनय की दृष्टि से अनुपयोगी एक वक्ता हो, तो वह एक द्रव्यावश्यक कहा जाता हैं । भिन्नभिन्न अनेक द्रव्यावश्यक यह नय चाहता नहीं हैं" इस पंक्ति का अर्थ ऐसा होता है कि अनेक द्रव्यावश्यक नहीं है परन्तु एक वक्ता हो और वह अनुपयोगी हो तो उसे एक द्रव्यावश्यक कहा जाता हैं । (परन्तु यदि उपयोगपूर्वक वक्ता कथन करता हो, तो भावावश्यक कहा जाता हैं ।) ऐसा ऋजुसूत्रनय मानता हैं । ऐसे प्रकार के अनुयोगद्वार सूत्र के पाठ के साथ ये तर्कवादी आचार्यो का अभिप्राय विरोध पाता हैं । क्योंकि तर्कवादी आचार्यों के अभिप्राय अनुसार ऋजुसूत्रनय पर्यायार्थिक में अंतर्गत होने से द्रव्यावश्यक को न माने और अनयोगद्वार के इस पाठ में द्रव्यावश्यक को मानता हैं ऐसा कहा हैं । जिससे उनको पाठ का विरोध आता हैं । तर्कवादी आचार्यों के अभिप्राय से अनुयोग द्वार सूत्र का उपरोक्त पाठ संगत नहीं होता हैं । यही बात ग्रंथकारश्री टबे में ज्यादा स्पष्ट करते हैं कि - (66) तीन प्रकार के द्रव्यांश होते हैं । उन तीन में से एक भी द्रव्यांश को यह ऋजुसूत्रनय उनके अभिप्राय से स्वीकार नहीं करता हैं । वह इस प्रकार - १. वर्तमान काल के पर्याय के आधारभूत ऐसा जो द्रव्यांश है वह । २. कालक्रमानुसार क्रमश: पूर्वापर रूप से होते ऐसे परिणामो में (पर्यायो में) वर्तित साधारण ऐसा ऊर्ध्वता-सामान्यरुप जो द्रव्यांश हैं वह, तथा ३. भिन्न-भिन्न व्यक्तिओं में (अनेक प्रकार के घडे में) सादृश्य के अस्तित्व स्वरूप से (यह भी घट, यह भी घट, यह भी घट इत्यादि स्वरूप में) वर्तित जो तिर्यक्सामान्य रुप द्रव्यांश है वह । ये तीनो प्रकार के द्रव्यांशो में से एक भी द्रव्यांश को पर्यायार्थिक नय स्वीकार नहीं करता हैं । इसलिए यदि ऋजुसूत्रनय पर्यायार्थिक है ऐसा कहे तो यह ऋजुसूत्रनय पर्यायार्थिक होने से उपरोक्त त्रिविध में से एक भी द्रव्यांश को न माननेवाला होगा, इसलिए द्रव्यावश्यक को माननेवाला कैसे होगा ? अर्थात् द्रव्यावश्यक में लीनता इस नय से किस तरह से संभव है ? अर्थात् संभवित नहीं है । उसको भावनिक्षेपा ही मान्य रहता हैं । द्रव्य निक्षेपा मान्य नहीं रहता हैं । इसलिए अनुयोगद्वार का सूत्रपाठ ये तर्कवादी आचार्यों के अभिप्राय से कैसे संगत होगा ? अर्थात् नहीं संगत होगा । इसलिए सूत्रपाठ न मिलने का उनको विरोध दोष आयेगा । ऐसा कहकर टबाकार ऐसा कहना चाहते है कि, ऋजुसूत्रनय को यदि द्रव्यार्थिक में न गिने तो अनुयोगद्वार सूत्र का यह पाठ संगत नहीं होता हैं । __ परन्तु जो सिद्धान्तवादी आचार्य है । उनको अनुयोगद्वार के इस पाठ का विरोध नहीं आता है । क्योंकि वे ऋजुसूत्रनय को वर्तमानग्राही होने पर भी द्रव्याथिकनय में अंतर्भाव करते हैं । इसलिए ऋजसत्रनय दो प्रकार का है । और २. स्थूल । वहाँ वर्तमानकालग्राही ऐसे भी ऋजुसूत्रनय को, १. प्रति समय के क्षणिकद्रव्यवादी-प्रतिक्षण प्रतिक्षण में पलटते हुए ऐसे क्षणिक पर्यायवाले द्रव्यांश को कहनेवाला सूक्ष्मऋजुसूत्र नय है और तत् तत् वर्तमान पर्यायापन्नद्रव्यवादी-तत् तत् (दीर्घ) वर्तमानकाल के पर्याय को पाये हुए ऐसे द्रव्यांश को कहनेवाला स्थूल ऋजुसूत्र नय हैं । ऐसा कहने से द्रव्यांश को माननेवाला ऋजुसूत्र नय होने से “द्रव्यावश्यक में लीन" मानने में कोई विरोध नहीं आता है । इस प्रकार सिद्धान्तवादी आचार्य कहते हैं । वर्तमान समयवर्ती द्रव्य में द्रव्यांश और पर्यायांश दोनों हैं । वहाँ यह नय द्रव्यांश को प्रधानता से ग्रहण करनेवाला हैं। ऋजुसूत्रनय चाहे क्षणिक वर्तमानकाल अथवा कुछ दीर्घकाल रुप वर्तमानकाल माने । परन्तु ऐसे दोनों प्रकार के वर्तमानकाल में रहे हुए द्रव्यांश की प्रधानता यह नय स्वीकार करता हैं । इसलिए आवश्यक उपर के चार निक्षेपा में द्रव्य निक्षेपा को भी स्वीकार करता है । ऐसा सिद्धान्तवादी आचार्य कहते हैं । 66.वर्तमानपर्यायाधारांशः द्रव्यांशः पूर्वापरपरिणामसाधारण उर्ध्वतासामान्य: द्रव्यांशः, सादृश्यास्तित्वरुपतिर्यक्सामान्यः द्रव्यांशः, एहमां एकई पर्यायनय न मानइ - तो ऋजसूत्र पर्यायनय कहतां, ए सूत्र किम मिलइ, ते माटई - "क्षणिकद्रव्यवादी सूक्ष्म ऋजुसूत्र, तत्तद् - वर्तमानपर्यायापन्नद्रव्यवादी स्थूल ऋजुसूत्रनय कहवो" इमे सिद्धान्तवादी कहइ छइ । १. सूक्ष्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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