SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - २, श्लोक - ७४, मीमांसक दर्शन ३६३/९८६ “अनेन सदृशो गौः” इति, तदुपमानमिति । तस्य G-97विषयः सादृश्यविशिष्टः परोक्षो गौः, तद्विशिष्टं वा सादृश्यमिति । अस्य चानधिगतार्थाधिगन्तृतया प्रामाण्यमुपपन्नं, यतोऽत्र गवयविषयेण प्रत्यक्षेण गवय एव विषयीकृतो न पुनरसन्निहितस्य गोः सादृश्यम् । यदपि तस्य पूर्व गौरिति प्रत्यक्षमभूत्, तथापि तस्य गवयोऽत्यन्तमप्रत्यक्ष एवेति कथं गवि तदपेक्षं तत्सादृश्यज्ञानम् । तदेवं गवयसदृशो गौरिति प्रागप्रतिपत्तेरनधिगतार्थाधिगन्तृपरोक्षे गवि गवयदर्शनात्सादृश्यज्ञानम् ।।७४ ।। व्याख्या का भावानुवाद : वेद अपौरुषेय होने से नित्य है। वह नित्यवेद से उत्पन्न होनेवाला अर्थात् वेद के शब्दो से उत्पन्न हुआ ज्ञान शाब्दप्रमाण है । शाबरभाष्य में शाब्दप्रमाण का यह लक्षण किया है - "शब्दज्ञानादसन्निकृष्टेऽर्थे बुद्धिः शाब्दं" - शब्दज्ञान से परोक्ष अर्थ में होने वाले ज्ञान को शाब्द = आगम कहा जाता है। "यह शब्द इस अर्थ का वाचक है" - इस संकेतज्ञान को शब्दज्ञान कहा जाता है। इस संकेतग्रहण के अनंतर शब्द सुनते ही जो परोक्ष घटादि अर्थ का भी ज्ञान होता है, उसको शाब्दप्रमाण कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि, जो शब्द से परोक्ष वस्तु में ज्ञान उत्पन्न हो, उसे शाब्द कहा जाता है। अर्थात् शब्द से होनेवाले अप्रत्यक्ष वस्तुविषयक ज्ञान को शाब्दप्रमाण कहा जाता है। __ जैमिनिमत में शब्द का स्वरुप इस अनुसार से बताया है - वर्णो को आकाश की तरह नित्य और सर्वगत मानते है। वे वर्ण तालु, मुख, नासिका आदि से प्रकट होते है। परंतु वे उत्पन्न होते नहीं है। विशिष्ट आनुपूर्वी = रचनावाले वर्ण ही शब्द कहे जाते है । शब्द भी नित्य है। शब्द और अर्थ का वाच्य-वाचकसंबंध भी नित्य है। __ अब उपमानप्रमाण का लक्षण कहते है। उपमान प्रसिद्ध है। उपमान का स्वरुप क्या है? एसी जिज्ञासा होने पर श्लोक में उसका स्वरुप बताते हुए कहा है कि - "प्रसिद्धार्थस्य" इत्यादि-प्रसिद्ध- उपलब्ध है। गौ आदि पदार्थ जिनको ऐसे पुरुष को - उस प्रसिद्धार्थ गौ आदि को अच्छी तरह से जाननेवाले पुरुष को गवय का दर्शन होते ही गवयगत सादृश्यता से परोक्ष ऐसी गाय में गवय की समानता का ज्ञान होना वह उपमान कहा जाता है। (यद्यपि गाय में गवय की समानता है ही, परंतु उपमान से पहले पुरुष को उसकी समानता का ज्ञान नहीं था । उपमानप्रमाण से "गाय इस गवय के समान है" ऐसा सादृश्यज्ञान होता है।) उपमान का लक्षणसूत्र यह है - "उपमानमपि सादृश्यादसन्निकृष्टेऽर्थे बुद्धिमुत्पादयति, यथा गवयदर्शनं गौस्मरणस्य" गवय की सदृशता से परोक्ष ऐसी गाय में (सादृश्य) ज्ञान उत्पन्न होता है, उसे उपमान कहा जाता है। यह उपमान गवय के दर्शन के बाद जिस पुरुष को गाय का स्मरण हो, उसको होता है। अर्थात् गवय का स्मरण करनेवाले पुरुष को ही होता है। शेष स्पष्ट है। (G-97)- तु० पा० प्र० प० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy