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________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक - ५७, जैनदर्शन व्याख्या येनेति शब्दोऽग्रे व्याख्यास्यते, वाक्यस्य सावधारणत्वात् । यदेव वस्तूत्पादव्ययध्रौव्यैः समुदितैर्युक्तं तदेव सद्विद्यमानमिष्यते । उत्पत्तिविनाशस्थितियोग व सतो वस्तुनो लक्षणमित्यर्थः । ननु पूर्वमसतो भावस्योत्पादव्ययध्रौव्ययोगाद्यदि पश्चात्सत्त्वं ? तर्हि शशशृङ्गादेरपि तद्योगात्सत्त्वं स्यात् पूर्वं सतश्चेत्, तदा स्वरूपसत्त्वमायातं किमुत्पादादिभिः कल्पितैः ? तथोत्पादव्ययध्रौव्याणामपि यद्यन्योत्पादादित्रययोगात्सत्त्वं, तदानवस्थाप्रसक्तिः । स्वतश्चेत्सत्त्वम्, तदा भावस्यापि स्वत एव तद्भविष्यतीति व्यर्थमुत्पादादिकल्पनमिति चेत् ? उच्यते न हि भिन्नोत्पादव्ययध्रौव्ययोगाद्भाव स्यसत्त्वमभ्युपगम्यते, किं तूत्पादव्ययध्रौव्ययोगात्मकमेव सदिति स्वीक्रियते G- 23 । तथाहिउर्वीपर्वततर्वादिकं सर्वं वस्तु द्रव्यात्मना नोत्पद्यते विपद्यते वा, परिस्फुटान्वयदर्शनात् । लूनपुनर्जातनखादिष्वन्वयदर्शनेन व्यभिचार इति न वाच्यं प्रमाणेन बाध्यमानस्यान्वयस्यापरिस्फुटत्वात् । न च प्रस्तुतोऽन्वयः प्रमाणविरुद्धः, सत्यप्रत्यभिज्ञानत्वात् । “सर्वव्यक्तिषु नियतं क्षणे क्षणेऽन्यत्वमथ च न विशेषः, सत्योश्चित्यपचित्योराकृतिजातिव्यवस्थानात्अ) ।। " इति वचनात् । ततो द्रव्यात्मना सर्वस्य वस्तुनः स्थितिरेव, पर्यायात्मना तु सर्वं वस्तूत्पद्यते विपद्यते वा, अस्खलितपर्यायानुभवसद्भावात् । २२८/८५१ 1 व्याख्या का भावानुवाद : श्लोक में निर्दिष्ट "येन" शब्द का व्याख्यान आगे किया जायेगा। सभी वाक्य निश्चयात्मक होते है । इसलिए जो वस्तु उत्पाद, व्यय और ध्रुवता ये तीन परिणामो से युक्त हो, उसे सत् - विद्यमान कही जा सकती है । उत्पत्ति, विनाश और स्थिति का योग ही सत् वस्तु का लक्षण है । अर्थात् जिसमें उत्पत्ति, विनाश और स्थिति, ये तीन का योग हुआ हो वही वस्तु सत् कही जाती है । शंका : “यदि पहले पदार्थ असत् हो और बाद में उत्पाद, व्यय और ध्रुवता के संबंध से सत् हो जाती है ।" ऐसा हो तो खरगोस के सींगादि असत्पदार्थो की भी उत्पादादि तीन के योग से सत्ता हो जायेगी । अर्थात् वह सत् बन जायेंगे । उपरांत, पदार्थ पहले से ही सत् हो, तो अर्थात् उत्पादादि तीन के संयोग के पहले ही सत् हो तो, वे पदार्थ स्वरुप से ही सत् है और जो पदार्थ स्वरुप से ही सत् है, तब उसमें उत्पादादि संबंध की कल्पना करके सत्ता मानना निरर्थक है । तथा जिस प्रकार से पदार्थों में उत्पादादि से सत्ता आती है, उसी ही प्रकार से यदि उत्पाद, व्यय और ध्रुवता में अन्य उत्पादादि से सत्ता आती हो तो उसमें भी अन्य से आयेगी... इस तरह से अनवस्था (अ) उद्धृतोऽयम् - अनेकान्तवादप्र० पृ ५१ ।। (G-23) - तु० पा० प्र० प० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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