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________________ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - २, श्लोक - ५५, जैनदर्शन २०९/८३२ सर्वद्रव्यैः समं संयोगवियोगभावेनानन्ताः स्वधर्माः, संयोगवियोगाविषयीकृतेभ्यो व्यावृत्तस्यानन्ताः परधर्माश्च । परिमाणतश्च तत्तद्रव्यापेक्षया तस्याणुत्वं महत्त्वं ह्रस्वत्वं दीर्घत्वं चानन्तभेदं स्यादित्यनन्ताः स्वधर्माः । ये सर्वद्रव्येभ्यो व्यावृत्त्या तस्य परपर्यायाः सम्भवन्ति ते सर्वे पृथक्त्वतो ज्ञातव्याः । दिग्देशतः परत्वापरत्वाभ्यां तस्य घटस्यान्यान्यानन्तद्रव्यापेक्षयासन्नतासन्नतरतासन्नतमता दूरता दूरतरता दूरतमता एकट्याद्यसङ्ख्यपर्यन्तयोजनैरासन्नता दूरता च भवतीति स्वपर्याया अनन्ताः । अथवाऽपरवस्त्वपेक्षया स पूर्वस्यां तदन्यापेक्षया पश्चिमायां स इत्येवं दिशो विदिशश्चाश्रित्य दूरासन्नादितयाऽसङ्ख्याः स्वपर्यायाः । कालतश्च परत्वापरत्वाभ्यां सर्वद्रव्येभ्यः क्षणलवघटीदिनमासवर्षयुगादिभिर्घटस्य पूर्वत्वेन परत्वेन चानन्तभेदेनानन्ताः स्वधर्माः । व्याख्या का भावानुवाद : (शब्दतः घट की विचारणा करने से ) शब्दतः घट के नानादेश की अपेक्षा से घट, कलश आदि अनेक शब्दो से वाच्य होने के कारण (घट के) अनेक स्वधर्म है। तथा घटादि उस उस शब्द के अनभिधेय अपर द्रव्य (घट से) व्यावृत्त होने के कारण घट के अनंता परधर्म होंगे। अर्थात् घट का घट, कलश आदि अनेक शब्दो से प्रयोग होता होने से शब्दतः घट के स्वधर्म अनेक है और जिस द्रव्यो का घट शब्द से प्रयोग होता नहीं है, वैसे द्रव्य अनंता है। इसलिए घट के परधर्मो की संख्या भी अनंती है। अथवा उस घट के जो जो स्व-परधर्म कहे गये और आगे कहे जायेंगे, (उसमें) वे सभी स्वधर्म के जितने वाचक शब्द है, उतने ही घट के स्वधर्म होगें और अन्य पदार्थो के जितने वाचक शब्द है, वे घट के परधर्म होगें। इसी ही तरह से संख्यातः भी स्व-पर धर्मो की विचारणा करे । संख्यातः घट का उस उस अपरअपर द्रव्यो की अपेक्षा पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा यावत् अनंतवां ऐसा व्यवहार होता है। अर्थात् इस द्रव्य की अपेक्षा से घट पहला, उस द्रव्य की अपेक्षा से दूसरा, इस प्रकार यावत् उस उस द्रव्यो की अपेक्षा से अनंतवां ऐसा भी व्यवहार होता है। इसलिए संख्यातः घट के अनंता स्व-धर्म है। उस उस संख्या से अनभिधेय अनंता द्रव्यो से घट की व्यावृत्ति होने के कारण घट के पर पर्याय भी अनंता है। अर्थात् घट में जो प्रथम, द्वितीय यावत् अनंततमत्व का व्यपदेश होता है, वह व्यपदेश घट से अन्यद्रव्यो में होता नहीं है, तब घट की उस द्रव्यो से व्यावृत्ति हो जाती है। वे द्रव्य अनंता होने से घट के अनंता पर पर्याय है। अथवा घटके परमाणुओ की जितनी संख्या या उसके वजन के रत्तियों की जितनी संख्या है, वह संख्या स्वधर्म है और वह संख्या से रहित द्रव्यो से घटकी व्यावृत्ति होने से घटके अनंता परर्याय है। तदुपरांत अनंतकाल की अपेक्षा से घट का सर्वद्रव्यो के साथ संयोग-वियोग होने के कारण उस संयोग-विभाग की दृष्टि से घट के अनंता स्व-धर्म होते है। अर्थात् स्वद्रव्यो के साथ का संयोग-विभाग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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