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________________ २१०/८३३ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - २, श्लोक - ५५, जैनदर्शन घट का स्व-धर्म बनेगा और वैसे संयोग-विभाग अनंता होने से अनंता स्वधर्म बनेंगे । तथा जो संयोग-विभाग के विषय नहीं कीये गये अर्थात् जिसमें संयोग-विभाग दिखाई नहीं देता, उन अनंतपदार्थो से घट की व्यावृत्ति होने के कारण वह परधर्म होगा। ऐसे पदार्थ भी अनंता होने से घट के परधर्म भी अनंता होंगे। __ परिमाणतः उस उस द्रव्य की अपेक्षा से घट में अणुत्व, इस्वत्व, महत्त्व, दीर्घत्व ऐसे अनंतभेद पडेंगे। अर्थात् अणुत्वादि परिमाण की अपेक्षा से घट के अनंता भेद है। इसलिए घट के अनंता स्वधर्म है। कहने का मतलब यह है कि घट मकान की अपेक्षा से छोटा है। छोटी घटिका (छोटे घडे) की अपेक्षा से बडा है। इत्यादि परिमाण की अपेक्षा से घट के अनंता भेद पडेंगे। वे सभी उसके स्व-धर्म है। उस उस परिमाणवाले घट की उस उस (घट के परिमाण से) भिन्न परिमाण वाले द्रव्यो से परिमाणतः व्यावृत्ति होने से परिमाणतः घट के पर पर्याय भी अनंता जानना । सभी द्रव्यो से घट की व्यावृत्ति होती होने से पृथक्त्वतः वे सभी पदार्थ घट के पर-पर्याय होते है। दिग्-देशतः अर्थात् दिशा की दृष्टि से परत्व-अपरत्व द्वारा उस घट में अन्य अन्य अनंत द्रव्यो की अपेक्षा से आसन्नता, आसन्नतरता, आसन्नतमता, दूरता, दूरतरता, दूरतमता होती है। तथा देश की दृष्टि से घट में एक, दो, तीन - यावत् अनंत योजनो के द्वारा अनंताद्रव्यो की अपेक्षा से आसन्नता-दूरता होती है। इसलिए दिग-देशतः घट के अनंता स्व-पर्याय है। कहने का मतलब यह है कि इस घट में अनंतद्रव्यो की अपेक्षा से निकटता, अतिनिकटता, अति-अति निकटता या दूरी, अति दूरी, अति-अति दूरी होती है। इसलिए दिशाकी दृष्टि से निकटता-दूरता आदि अनंता स्व-पर्याय घट में होते है। देशतः घट का विचार करे तो घट अनंत द्रव्यो की अपेक्षा से दूर के देश में रहा है.... यावत् असंख्ययोजन दूर के देश में रहा है। एक, दो.. यावत् असंख्ययोजन पास के देश में रहा है। इसलिए देशतः घट में भी निकटता - दूरता आदि अनंता स्वरूप पर्याय होते है। __ अथवा वह घट दूसरी वस्तु की अपेक्षा से पूर्वदिशा में है। (उससे) अन्यवस्तु की अपेक्षा से पश्चिम दिशा में है... इत्यादि तरह से सोचने से दिशा और विदिशा के आश्रय में (घट में) दूरता-आसन्नता की अपेक्षा से असंख्य स्वपर्याय है। (सारांश में, दिक्कृत परत्व-अपरत्व की अपेक्षा से अनंता स्व-पर्याय है। कालकृत परत्व-अपरत्व की अपेक्षा से भी घट में अनंता स्वधर्म होते है। वे अब बताते है।) कालतः परत्व-अपरत्व द्वारा सर्वद्रव्य से क्षण-लव-घडी-दिन-मास-वर्ष-युगादि इत्यादि वर्षों की अपेक्षा से घट में पूर्वत्व और परत्व होने के कारण अनंतभेद होते है। इसलिए घट के कालकृत परत्व-अपरत्वतः अनंता स्व-धर्म है। कहने का मतलब यह है कि यह घट एक वस्तु से एक क्षण पूर्व का या पीछे का है, वही घट दूसरी वस्तु से दो क्षण पूर्व का या बाद का है, वही घट अन्य वस्तु से एक दिन पूर्व का या पीछे का है। इस तरह से क्षणादि कालो के द्वारा अनंत द्रव्यो से घट में परत्व-अपरत्व का व्यवहार होता है। इसलिए घट के कालकृत परत्व-अपरत्वतः अनंता स्व-धर्म है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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