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________________ १८४/८०७ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - २, श्लोक - ५५, जैनदर्शन अर्थात् प्रमाण द्वारा अनंतधर्मात्मक वस्तु को जाना जा सकता है। ___ व्याख्या-अक्षम्-इन्द्रियं प्रतिगतमिन्द्रियाधीनतया यदुत्पद्यते तत्प्रत्यक्षमिति तत्पुरुषः, इदं F-4'व्युत्पत्तिनिमित्तमेव प्रवृत्तिनिमित्तं तु स्पष्टत्वम, तेनानिन्द्रियादिप्रत्यक्षमपिप्रत्यक्षशब्दवाच्यं सिद्धम्, 1-50अक्षो-जीवो वात्र व्याख्येयः, जीवमाश्रित्यैवेन्द्रियनिरपेक्षमनिन्द्रियादिप्रत्यक्षस्योत्पत्तेः । तत्र तत्पुरुषाने : प्रत्यक्षा बुद्धिरित्यादौ स्त्रीपुंसभावोऽपि सिद्धः । अक्षाणां पर -८.६. यापानिरपेक्ष मनोव्यापारेणासाक्षादर्थपरिच्छेदकम् -5 परोक्षमिति, परशब्दसमानार्थेन परस्-शब्देन सिद्धम् । 1-52चशब्दौ द्वयोरपि दुल्' लक्षयतः, तेनानुमानादेः परोक्षस्य प्रत्यक्षपूर्वकत्वेन प्रवृत्तेर्यत्कैश्चित्प्रत्यक्षं -5....ष्टमेतन्न श्रेष्ठमिति सूचितम्, द्वयोरपि प्रामाण्यं प्रतिविशेषाभावात् । “पश्य मृगो धावति" इत्यादौ प्रत्यक्षस्यापि परोक्षपूर्वकस्य प्रवृत्तेः परोक्षस्य ज्येष्ठताप्रसङ्गात् । प्रत्यक्षपूर्वकमेव च परोक्षमुपजायत इति नायं सर्वत्रैकान्तः, अन्यथानुपपन्नतावधारितोच्छ्वास-निःश्वासादिजीवलिङ्गसद्भावासद्भावाभ्यां जीवसाक्षात्कारिप्रत्यक्षक्षणेऽपि जीवन्मृतप्रतीतिदर्शनात्, अन्यथा लोकव्यवहाराभावप्रसङ्गात् । तथाशब्दः प्रागुक्तनवतत्त्वाद्यपेक्षया समुञ्चये, वाक्यस्य सावधारणत्वात्, द्वे एव -5'प्रत्यक्षपरोक्षप्रमाणे मते-सम्मते । व्याख्या का भावानुवाद : इन्द्रिय की अधीनतया जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसे प्रत्यक्ष कहा जाता है। अर्थात् इन्द्रियो के द्वारा जो ज्ञान की उत्पत्ति होती है उसे प्रत्यक्ष कहा जाता है। यह (मात्र) प्रत्यक्ष शब्द का व्युत्पत्तिनिमित्त है। अर्थात् प्रत्यक्ष शब्द की शाब्दिक व्युत्पत्ति है। प्रत्यक्ष का प्रवृत्तिनिमित्त स्पष्टत्व है। इससे सिद्ध होता है कि जो ज्ञान स्पष्ट हो, वह इन्द्रिय से उत्पन्न हो या अनिन्द्रिय से उत्पन्न हो तो भी प्रत्यक्ष शब्द से वाच्य है। ___यहाँ अक्ष का अर्थ जीव - आत्मा करना । (इसलिए व्याख्या इस प्रकार होगी) आत्मा का आश्रय करके इन्द्रियो से निरपेक्ष जो ज्ञान उत्पन्न होता है, वह भी प्रत्यक्ष है। इस व्युत्पत्ति से अतीन्द्रिय और अनिन्द्रिय - मानसज्ञान में भी प्रत्यक्षता सिद्ध हो जाती है। तत्पुरुष समान करने से प्रत्यक्ष बोध और प्रत्यक्षा बुद्धि, इस तरह से पुलिंग और स्त्रीलिंग में प्रत्यक्ष शब्द का प्रयोग हो सकता है । (कहने का मतलब यह है कि तत्पुरुष समास का आश्रय करने से प्रत्यक्ष शब्द का विशेष्य के लिंग अनुसार तीनो लिंगो में प्रयोग होता है। जैसे कि प्रत्यक्षो बोधः, प्रत्यक्षा बुद्धिः, प्रत्यक्षं ज्ञानं । यहाँ टीका में दो लिंगो का प्रयोग बताया है।) इन्द्रिय के व्यापार से निरपेक्ष मनोव्यापार से असाक्षात (अप्रत्यक्ष) पदार्थ का जो ज्ञान कराता है उसे (F-49-50-51-52-53-54) - तु० पा० प्र० प० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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