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________________ षड्दर्शन समुच्चय, भाग-२ (९-६०९) क्रम विषय श्लोक नं. प्र. नं. | क्रम विषय श्लोक नं. पृ. नं.. नैयायिक दर्शन : अधिकार - २ ९९ दृष्टांत और सिद्धांततत्त्व ७६ नैयायिकदर्शन का प्रारंभ, उसके वेश, । की व्याख्या (२६) १८४ लिंग और आचार (१२) १२५ | १०० अवयव-तर्क-निर्णयतत्त्व ७७ नैयायिकमत में विभु-नित्य-एक का स्वरूप (२७, २८) १८९ ___सर्वज्ञ-नित्यबुद्धिवान् शिवदेव (१३) १२८ | १०१ प्रतिज्ञा आदि पांच अवयव (२७, २८) १८९ ७८ ईश्वर की जगत्कर्ता के रूप में सिद्धि(१३) १२९ | १०२ तर्क की व्याख्या (२७, २८) १९१ १०३ निर्णय तत्त्व की व्याख्या ७९ प्रमाणादि सोलह (१६) तत्त्वो की (२७, २८) १९२ १०४ वादतत्त्व का निरुपण (२९) १९३ प्ररूपणा (१४, १५, १६) १३४ १०५ कथा के दो प्रकार (२९) १९३ ८० प्रमाण का सामान्य लक्षण (१४, १५, १६) १३८ | १०६ कथा के वादि आदि चार अंग (२९) १९४ ८१ प्रमाण के प्रत्यक्षादि चार भेद (१७, १८, १९) १३९ |१०७ जल्प और वितंडा का स्वरुप (३०) १९५ ८२ प्रत्यक्ष प्रमाण का लक्षण (१७, १८, १९) १४० | १०८ हेत्वाभासादि तीन का स्वरुप (३१) १९७ ८३ संयोगादि छः सन्निकर्ष (१७, १८, १९) १४२ | १०९ असिद्ध आदि हेत्वाभास के ८४ प्रत्यक्ष प्रमाण के लक्षणगत पांच प्रकार (३१) १९८ शब्दों की सार्थकता (१७, १८, १९) १४४ | ११० छल का स्वरुप तथा उसके वाक्छल ८५ प्रत्यक्ष प्रमाण का फलादि तीन आदि तीन प्रकार (३१) २०२ विशेषणपक्षों की विचारणा (१७, १८, १९) १४७ | १११ जातितत्त्व की व्याख्या तथा ८६ प्रत्यक्ष प्रमाण के दो भेद (१७, १८, १९) १५० | उसके २४ भेदो के नाम (३१) ८७ अनुमान प्रमाण का लक्षण १५१ | ११२ साधर्म्यसमा जाति (३१) २०५ ८८ अनुमान प्रमाण के पूर्ववत् आदि | ११३ वैधर्म्य-उत्कर्ष-अपकर्ष समाजाति (३१) तीन भेदों का वर्णन (१७, १८, १९) १५४ /११४ वर्ण्य-अवर्ण्यसमाजाति (३१) २०७ ८९ हेतु के पक्षधर्मता आदि पांचरूप (१७,१८,१९)१५६ / ११५ विकल्पसमाजाति (३१) ९० अनुमान के विषय के तीन प्रकार (१७,१८,१९)१५७ | ११६ साध्य-प्राप्ति-अप्राप्तिसमाजाति (३१) २०९ ९१ पूर्ववत् आदि अनुमान के भेदों की | ११७ प्रसंग-प्रतिदृष्टांत-अनुत्पत्ति-समाजाति(३१) २१० भिन्न प्रकार से प्ररुपणा (१७, १८, १९) १६४ |११८ संशय-प्रकरण समाजाति (३१) ११९ हेतुसमाजाति (३१) २१२ ९२ पूर्ववत् अनुमान का उदाहरण (२०) १६८ १२० अर्थापत्ति-अविशेष समाजाति (३१) २१३ ९३ शेषवत् अनुमान का उदाहरण (२१) १६९ १२१ उपपत्ति-उपलब्धि९४ सामान्यतोदृष्ट अनुमान का उदाहरण (२२) १७० अनुपलब्धि समाजाति (३१) २१३ ९५ उपमान प्रमाण का लक्षण (२३) १७१ १२२ नित्य-अनित्यसमा जाति (३१) ९६ शब्द प्रमाण का लक्षण (२४) १७३ | १२३ कार्यसमाजाति (३१) ९७ प्रमेय का लक्षण तथा आत्मादि |१२४ जातिओं का प्रति समाधान (३१) २१७ प्रमेय का निरुपण (२४) १७४ | १२५ निग्रहस्थान का स्वरुप तथा उसके ९८ संशय-प्रयोजन का स्वरूप (२५) १८१ । प्रतिज्ञाहानि आदि २२ भेद के नाम (३२) २२३ २०८ २११ २१५ २१६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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