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________________ षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, विस्तृत विषयानुक्रम क्रम विषय श्लोक नं. प्र. नं. क्रम विषय १२७ प्रतिज्ञाहानि निग्रहस्थान (३२) २२५ १५० सांख्यकारिका के आधार पर बुद्धि १२८ प्रतिज्ञान्तर - प्रतिज्ञाविरोध निग्रहस्थान (३२) २२६ आदि तथा प्रकृति का विस्तार से स्वरूप (३२) २२७ (३२) २२८ ९४ १२९ प्रतिज्ञासंन्यास निग्रहस्थान १३० हेत्वन्तर - अर्थान्तर निग्रहस्थान १३१ निरर्थक - अविज्ञातार्थ अपार्थक निग्रहस्थान १३२ अप्राप्तकाल - न्यून निग्रहस्थान १३३ अधिक - पुनरुक्त अननुभाषण निग्रहस्थान अधिक- अप्रतिभा निग्रहस्थान विक्षेप निग्रहस्थान १३४ मतानुज्ञा - पर्यनुयोज्योपेक्षणनिरनुयोज्यानुयोग निग्रहस्थान सांख्यमत के प्रारंभ का सूचन (३२) २२९ (३२) २३० १३५ अपसिद्धांत - हेत्वाभास निग्रहस्थान १३६ मूलग्रंथकार श्री ने नहीं कही हुई कुछ नैयायिकदर्शन की मान्यतायें (३२) १३७ नैयायिकमत का उपसंहार (३२) २३० (३२) २३१ (३२) २३२ १४४ प्रकृति का स्वरूप १४५ सृष्टिक्रम १४६ बुद्धि - अहंकार का स्वरुप १४७ षोडशसमुदाय के नाम १४८ पंचभूत की उत्पत्ति १४९ पुरुषतत्त्व का निरुपण (३२) (३२) Jain Education International सांख्य दर्शन : अधिकार - ३ (३३) २३३ २३४ २३५ १३८ सांख्यदर्शन २३७ १३९ सांख्यमत के वेष, लिंग और आचार (३३) २३८ १४० सांख्यमत का प्रारंभ (३४) २३९ १४१ दुःख के तीन प्रकार (३४) २४० १४२ सांख्यमत को मान्य २५ तत्त्व का निरुपण १४३ सत्त्वादि तीनगुणो का निरूपण और उसके कार्य २३६ (३५) २४१ १५१ पुरुषतत्त्व का स्वरूप १५२ तत्त्वो का उपसंहार | १५३ प्रकृति और पुरुष की लंगडे और अंध के समान वृत्ति १५४ प्रमाण का स्वरूप १५५ प्रमाण का सामान्यस्वरूप तथा प्रमाण के भेद १५६ मूलग्रंथकार श्री ने नहि कहा हुआ विशेषवाच्यार्थ १५७ सांख्यमत का उपसंहार १५८ सांख्यदर्शन का विशेषार्थ १५९ पुरुष के दो प्रकार १६० तत्त्वविचार १६१ सत्कार्यवाद | १६२ सृष्टि विकास श्लोक नं. (३५) २४२ (३६) २४३ (३७) २४४ (३७) २४५ ( ३८,३९) २४५ (४०) २४७ १७४ कारिका-२ (४१) २४८ | १७५ कारिका-३ का विशेषार्थ For Personal & Private Use Only प्र. नं.. (४१) २४९ (४१) २५२ (४२) २५५ (४२) २५६ (४३) २५८ (४३) २५८ १६३ पुरुष तत्त्व | १६४ पुरुष - प्रकृति संयोग १६५ प्रकृति १६६ प्रकृति की अवस्था विशेष १६७ विशेष अवस्था १६८ अविशेष- लिंगमात्र अवस्था १६९ अलिंग अवस्था १७० प्रकृति के दूसरे नाम १७१ सेश्वरवादी मत से ईश्वर का स्वरूप १७२ पांच क्लेश का स्वरूप १७३ सांख्यकारिका का विशेषार्थ- कारिका-१ (४३) २६० (४४) २६१ २६४ २६४ २६५ २६८ २७० २७१ २७२ २७३ २७४ २७४ २७५ २७६ २७७ २७७ २७८ २८१ २८१ २८२ www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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