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________________ क्रम विषय श्लोक नं. नैयायिक दर्शन : अधिकार २ ७६ नैयायिकदर्शन का प्रारंभ, उसके वेश, लिंग और आचार (१२) दर्शन समुच्चय, भाग-१, विस्तृत विषयानुक्रम ७७ नैयायिकमत में विभु- नित्य- एक सर्वज्ञ-नित्यबुद्धिवान् शिवदेव (१३) ७८ ईश्वर की जगत्कर्ता के रूप में सिद्धि (१३) ७९ प्रमाणादि सोलह (१६) तत्त्वो की प्ररूपणा ( १४, १५, १६ ) ८० प्रमाण का सामान्य लक्षण (१४, १५, १६ ) ८१ प्रमाण के प्रत्यक्षादि चार भेद (१७, १८, १९) ८२ प्रत्यक्ष प्रमाण का लक्षण ( १७, १८, १९ ) ८३ संयोगादि छः सन्निकर्ष ( १७, १८, १९) ८४ प्रत्यक्ष प्रमाण के लक्षणगत शब्दों की सार्थकता ८५ प्रत्यक्ष प्रमाण का फलादि तीन विशेषणपक्षों की विचारणा ( १७, १८, १९) ८६ प्रत्यक्ष प्रमाण के दो भेद ( १७, १८, १९) ( १७, १८, १९) ९६ शब्द प्रमाण का लक्षण ९७ प्रमेय का लक्षण तथा आत्मादि प्रमेय का निरुपण ९८ संशय - प्रयोजन का स्वरूप Jain Education International पृ. नं. क्रम विषय ९९ दृष्टांत और सिद्धांततत्त्व की व्याख्या १२५ १०० अवयव तर्क निर्णयतत्त्व (२४) (२५) का स्वरूप १२८ १०१ प्रतिज्ञा आदि पांच अवयव १०२ तर्क की व्याख्या १२९ १०३ निर्णय तत्त्व की व्याख्या १३४ १३८ १३९ १४० १४२ ८७ अनुमान प्रमाण का लक्षण ८८ अनुमान प्रमाण के पूर्ववत् आदि तीन भेदों का वर्णन ( १७, १८, १९) १५४ ८९ हेतु के पक्षधर्मता आदि पांचरूप ( १७, १८, १९) १५६ ९० अनुमान के विषय के तीन प्रकार ( १७, १८, १९) १५७ ९१ पूर्ववत् आदि अनुमान के भेदों की भिन्न प्रकार से प्ररूपणा ( १७, १८, १९) १६४ ९२ पूर्ववत् अनुमान का उदाहरण (२०) १६८ ९३ शेषवत् अनुमान का उदाहरण (२१) १६९ ९४ सामान्यतोदृष्ट अनुमान का उदाहरण (२२) १७० ९५ उपमान प्रमाण का लक्षण (२३) १७१ १४४ १०४ वादतत्त्व का निरुपण १०५ कथा के दो प्रकार १०६ कथा के वादि आदि चार अंग १०७ जल्प और वितंडा का स्वरुप १०८ हेत्वाभासादि तीन का स्वरुप १०९ असिद्ध आदि हेत्वाभास के १४७ १५० १५१ | ११२ साधर्म्यसमा जाति पांच प्रकार ११० छल का स्वरुप तथा उसके वाक्छल आदि तीन प्रकार १११ जातितत्त्व की व्याख्या तथा उसके २४ भेदो के नाम ११९ हेतुसमाजात १२० अर्थापत्ति- अविशेष समाजाति १२१ उपपत्ति-उपलब्धि अनुपलब्धि समाजाति १२२ नित्य- अनित्यसमा जाति (२४) १७३ १२३ कार्यसमाजाति श्लोक नं. (२६) For Personal & Private Use Only (३१) (३१) (३१) ११३ वैधर्म्य - उत्कर्ष - अपकर्ष समाजाति ११४ वर्ण्य - अवर्ण्यसमाजाति ११५ विकल्पसमाजाति (३१) (३१) (३१) ११६ साध्य प्राप्ति अप्राप्तिसमाजाति ११७ प्रसंग प्रतिदृष्टांत अनुत्पत्ति-समाजाति (३१) ११८ संशय-प्रकरण समाजाति (३१) (३१) (३१) (२७, २८) १८९ (२७, २८) १८९ (२७, २८) १९१ (२७, २८) १९२ (२९) १९३ (२९) १९३ (२९) १९४ (३०) १९५ (३१) १९७ पृ. ९३ १२४ जातिओं का प्रति समाधान १७४ १२५ निग्रहस्थान का स्वरुप तथा उसके प्रतिज्ञाहानि आदि २२ भेद के नाम (३२) १८१ नं.. १८४ १९८ २०२ २०५ २०५ २०६ २०७ २०८ २०९ २१० २११ (३१) २१२ (३१) २१३ (३१) २१३ (३१) २१५ (३१) २१६ (३१) २१७ २२३ www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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