SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, भूमिका का विस्तृत विवेचन, मीमांसक दर्शन के प्रमाण - प्रमेय विषयो का विस्तृत पतिपादन, योगदर्शन के पदार्थो का स्वरूप, बौद्ध और सांख्यदर्शन में विशेषार्थ, जैनदर्शन की टीका में अनेक वादो की परीक्षा, जैनदर्शन के स्याद्वाद, नय, सप्तभंगी, निक्षेप, नवतत्त्व का विशेषार्थ और केवल जैन दर्शन में ही उपलब्ध ऐसी कर्म विषयक सामग्री तथा जैनदर्शन का ग्रंथकलाप इत्यादि अनेक विषयो का संकलन किया गया हैं । सारांश में, प्रस्तुत दो भाग में विभक्त ग्रंथ में विस्तृत भूमिका, पूज्यो की शुभाभिलाषा, दो पंडितजी के अभिप्राय, ग्रंथ की पंक्ति का सरल और यथार्थ अनुवाद, तत् तत् दर्शन के विशेषार्थ, २२ परिशिष्टो में अधिक पदार्थो का समावेश, टीका की शैली का परिचय, टीकाकारश्रीने जो पदार्थो का वर्णन किया हैं, उसके मूल आधारस्थान (साक्षीपाठ), प्रत्येक दर्शन के पारिभाषिक शब्दो की अर्थ सहित स्वतंत्र सूची आदि को समाविष्ट करके दर्शन के जिज्ञासुओं को उपयोगी विषयो का संग्रह करने का समुचित प्रयत्न किया गया हैं । मेरे अल्प क्षयोपशम और संप्राप्त सामग्री के आधार पर इस हिन्दी भावानुवाद का आलेखन और अनेक दार्शनिक सिद्धांत-मान्यताओं का संकलन किया हैं । उसमें कोई भी स्थान पर शास्त्रदृष्टि से क्षति मालूम हो तो विद्वानो को शास्त्र के आधार सहित बताने की नम्र प्रार्थना - सुझाव हैं । __ प्रस्तुत ग्रंथ के माध्यम से सर्व धर्म की विभावनाओं के स्वरूप को यथार्थ रूप से समझकर सत्यमार्ग के चाहक - पथिक बनकर अपने आत्मा का कल्याण करे, यही सदा सदा के लिए शुभाभिलाषा... दिनांक १२-०९-११, सोमवार भाद्रपद शुक्ल १५, २०६७ मु. संयमकीर्ति वि. श्री रत्नत्रयी आराधना भवन, वसंतकुंज, अहमदाबाद । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy