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षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, भूमिका
दर्शनसंग्राहक ग्रंथ :
जैनदर्शन के, श्री जैनाचार्यो ने दर्शन संग्राहक अनेक ग्रंथो की रचना की है । उसमें पू.आ.भ.श्री. हरिभद्रसूरिजी महाराजा कृत "षड्दर्शन समुञ्चय" अतिप्रसिद्ध हैं । यह ग्रंथ आपके हाथ में ही है, इसलिए उसका विशेष परिचय देने की आवश्यकता नहीं हैं । इस ग्रंथ के उपर लघुवृत्ति और बृहवृत्ति ऐसे दो टीका उपलब्ध हैं ।
पू.आ.भ. श्री राजशेखरसूरिजी म. प्रणित ‘षड्दर्शन समुञ्चय' ग्रंथ में भिन्न-भिन्न दर्शनो का प्रतिपादन हुआ है । (१) जैन, (२) सांख्य, (३) जैमिमि, (४) योग, (५) वैशेषिक और (६) सौगत (बौद्ध)। - इस क्रम से दर्शन का निरूपण हुआ है । इसके बाद योगदर्शन का परिचय, अष्टांग योग का स्वरूप इत्यादि सुंदर तरीके से वर्णन किया है । अंत में चार्वाक दर्शन का निरुपण करके जीव के अस्तित्व को स्वीकार करते चार्वाक के सिवा सभी दर्शन आस्तिकदर्शनो की कोटी में आते है, ऐसा प्रतिपादन करके ग्रंथ की समाप्ति की है।
जैनाचार्य श्री मेरुतुंगसूरिजी कृत "षड्दर्शन निर्णय" ग्रंथ भी दर्शन संग्राहक ग्रंथ है । उसमें क्रमश: बौद्ध, मीमांसा (पूर्व और उत्तर दोनों) सांख्य, वैशेषिक, नैयायिक और जैनदर्शन, इन छ: दर्शनो की मीमांसा की है । मुख्यतया देव, गुरु और धर्म का स्वरूप वर्णन करके जैनमतानुसार उसकी समीक्षा की गई है । अंत में जैनसंमत देव-गुरु-धर्म का स्वरूप प्रतिपादित करके ऐसा ही स्वरूप महाभारत, पुराण, स्मृति आदि से भी समर्थित होता है, ऐसा कहकर साक्षीपाठ दिये है।
श्री जैनमुनि विरचित 'सर्वसिद्धान्त प्रवेशक' नामका ग्रंथ भी दर्शनसंग्राहक ग्रंथ की कोटी में आ सकता है । गद्यात्मक इस ग्रंथ में नैयायिक, वैशेषिक, जैन, सांख्य, बौद्ध, मीमांसक और चार्वाक ऐसे सात दर्शनो का निरूपण है । यह ग्रंथ संक्षेपरूचिवाले जीवो के लिए उपकारक है । रचना शैली अतिविस्तृत या अतिसंक्षिप्त नहीं है । परन्तु मध्यम है तथा प्रतिपादन शैली मनोहर है ।
श्री जैनाचार्य विरचित "षड्दर्शन परिक्रम" ग्रंथ भी दर्शन संग्राहक ग्रंथो की श्रेणी में आ सके ऐसा है । ६६ श्लोक प्रमाण इस ग्रथ में (१) जैन, (२) मीमांसक, (३) बौद्ध, (४) सांख्य, (५) शैव और (६) नास्तिक । इन छ: दर्शनो का क्रमशः वर्णन किया गया है । इस ग्रंथ में वेदांत दर्शन का मीमांसक दर्शन में अन्तर्भाव किया है और शैवदर्शन के रुप में नैयायिक और वैशेषिक की गणना (श्लोक ४०) करके उन दोनों को एक ही माने हैं ।
श्री सिद्धसेन दिवाकरसूरिजी ने बत्तीस बतीसीयों की रचना की थी । उसमें से हाल में बाईस (२२) बत्तीसीयाँ उपलब्ध होती है । उसमें बारहवीं बत्तीसी में न्यायदर्शन, तेरहवीं में सांख्यदर्शन, चौदहवीं में वैशेषिक दर्शन, पंद्रहवीं में बौद्ध-दर्शन और सोलहवीं बत्तीसी में नियति दर्शन का स्वरूप बताया हैं । बाकी की बत्तीसीयाँ जैनदर्शन के साथ संबंध रखती हैं । वे बत्तीसीयाँ अत्यंत गहन हैं । पंडितजनो को भी उसका बोध होना कठिन है । ये बत्तीसीयाँ भी दर्शन संग्राहक ग्रंथो की कोटी में ही समाविष्ट होती है। ___ पू.आ.भ. श्री हरिभद्रसूरिजी कृत शास्त्रवार्ता समुञ्चय ग्रंथ को भी 'दर्शन संग्राहक' ग्रंथो में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता हैं । षड्दर्शन समुच्चय से इस ग्रंथ की शैली भिन्न है । षड्दर्शन समुञ्चय ग्रंथ में क्रमशः दर्शनो का निरूपण किया गया है । परन्तु उसमें केवल दर्शनो का परिचय ही है । किसी का खंडन या मंडन नहीं है । जब कि, शास्त्रवार्ता समुच्चय ग्रंथ में दर्शनो का निरुपण भी है और खंडन-मंडन भी है और दर्शन विभाग के क्रम से वर्णन नहीं है, परन्तु विषय विभाग को लेकर वर्णन किया गया है ।
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