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________________ षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, भूमिका श्री मंडनमिश्र अद्वैत प्रतिपादक आचार्य थे । वे शंकराचार्य के समकालीन थे । उन्हों ने "ब्रह्मसिद्धि" नाम का अद्वैत प्ररूपक प्रसिद्ध ग्रंथ रचा था । उसके उपर श्री वाचस्पति मिश्रने "ब्रह्मतत्त्वसमीक्षा", श्री चित्सुख की "अभिप्राय प्रकाशिका" तथा श्री आनंदपूर्ण की "भावशुद्धि" व्याख्या रची गई हैं । ___ श्री शंकराचार्य के शिष्य श्री सुरेश्वराचार्य ने उपनिषद् भाष्य के उपर वार्तिको की रचना करके “वार्तिककार" के रूप में प्रसिद्धि पाई थी । उनका बृहदारण्यक भाष्य - वार्तिक, प्रौढ-पांडित्यपूर्ण ग्रंथ है । उसके सिवा तैतिरीय भाष्यवार्तिक, नैष्कर्म्य सिद्धि, दक्षिणामूर्ति स्तोत्रवार्तिक, श्री पंचीकरणवार्तिक आदि ग्रंथ प्रसिद्ध है । श्री शंकराचार्य के दूसरे शिष्य श्री पद्मपादाचार्यने शारीरिक भाष्य की "पंचपादिका" नामकी प्रथम वृत्ति रची थी। उसके उपरांत 'प्रपंचसारी' टीका और 'विज्ञानदीपिका' ये दो कृतियाँ उनकी रचना मानी जाती है । __श्री सुरेश्वराचार्य के शिष्य श्री सर्वज्ञात्ममुनि ने ब्रह्मसूत्रो के उपर “संक्षेप शारीरक" नामका प्रख्यात ग्रंथ रचा है । उसके उपर श्री नृसिंहाश्रम की तत्त्वबोधिनी" और श्री मधुसूदन सरस्वती की “सारसंग्रह" टीका है । श्री वाचस्पति मिश्र ने शारीरिक भाष्य के उपर "भामती" नामकी प्रसिद्ध टीका रची है । श्री विमुक्तात्माने “इष्टसिद्धि" नामके ग्रंथ की रचना करके "अविद्या" का बहोत विस्तार से स्वरूप समजाया है । श्री हर्ष ने 'खंडनखंड खाद्य' नाम के अद्वैत-प्रतिपादक ग्रंथ की रचना की थी । उसके उपर नैयायिक श्री शंकरमिश्रने टीका रची है । श्री अद्वैतानंद का "ब्रह्मविद्याभरण भाष्य" और श्री आनंदबोध का "न्यायमकरंद" ग्रंथ अद्वैत वेदांत के माननीय ग्रंथ है । श्री चित्सुखाचार्य ने 'तत्त्वदीपिका,' शारीरिक भाष्य की 'भाव प्रकाशिका' टीका, ब्रह्मसिद्धि के उपर 'अभिप्राय प्रकाशिका' टीका और नैष्कर्म्य सिद्धि के उपर 'भावतत्त्व प्रकाशिका' ग्रंथो की रचना की है । जिसमें अद्वैत वेदांत के विषयो को सरल भाषा में समजाया गया है । श्री अमलानंद ने “भामती" टीका के उपर 'कल्पतरु' और 'शास्त्रदर्पण' ग्रंथ की रचना की है । श्री विद्यारण्य स्वामीने पंचशती, प्रमेय संग्रह, अनुभूति प्रकाश, जीवन्मुक्ति विवेक, बृहदारण्यक - वार्तिकसार आदि वेदांत के ग्रंथ रचे थे। श्री आनंदगिरि का न्यायनिर्णय, श्री प्रकाशानंद के “वेदांतसिद्धांत मुक्तावली" और श्री अखंडानंद के 'तत्त्वदीपन' नाम के ग्रंथ वेदांत के उपर अच्छा प्रकाश डालते हैं । श्री मधुसुदन सरस्वती ने अद्वैतसिद्धि, वेदांतकल्प लतिका, सिद्धांत बिंदु, गीता-टीका आदि लोकप्रिय ग्रंथो की रचना की है । श्री अप्पय दीक्षित के 'शिवार्कमणिदीपिका' (श्री कंठाचार्य के भाष्य के उपर की टीका), कल्पतरु परिमल (अमलानंद कृत 'कल्पतरु' की व्याख्या) और 'सिद्धांतलेश संग्रह' ग्रंथ अद्वैत वेदांत के महत्त्वपूर्ण सिद्धांतो के प्रतिपादक ग्रंथ हैं । श्री धर्मराजा ध्वरीन्द्र का "वेदांत परिभाषा" ग्रंथ अतिप्रसिद्ध है । वह ग्रंथ अद्वैत वेदांत के सिद्धांतो को समजने के लिए प्राथमिक ग्रंथ माने जाते है । श्री सदानंद का 'वेदांतसार' ग्रंथ भी उसी कोटि में आता हैं । वेदांत के विशिष्टाद्वैत आदि सिद्धांतो के ग्रंथो के नाम जितने मिलते है, वह परिशिष्ट में संगृहित किये है। इसलिए यहाँ उल्लेख नहीं करते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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