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षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, भूमिका
(अद्वैत वेदांत का महत्त्वपूर्ण विवरण) । श्री कुमारिल भट्ट के दूसरे शिष्य श्री उम्बेकने दो ग्रंथ बनाये थे । (१) टीका (श्लोकवार्तिककी स्वल्पाक्षरी टीका) (२) भावनाविवेक की टीका ।
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श्री वाचस्पति मिश्रने पूर्वोक्त विधिविवेक की टीका "न्याय कर्णिका" नाम से और शाब्दबोध के विषय में " तत्त्वबिंदु " नामके प्रौढ मीमांसाग्रंथ की रचना की थी ।
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भाट्ट संप्रदाय के आचार्य श्री पार्थसारथि मिश्र ने (१) न्यायरत्नाकर, (२) तर्करत्न, (३) न्यायरत्नमाला और (४) शास्त्रदीपिका, नाम के मीमांसा के ग्रंथ रचे थे । श्री माघवाचार्य ने "न्यायमालाविस्तर" नाम का मीमांसा विवेचक ग्रंथ का प्रणयन किया था । भाट्ट संप्रदाय के "नव्यमत" के प्रणेता के रुप में प्रसिद्ध श्रीखंडदेव मिश्र ने तीन प्रसिद्ध ग्रंथो की रचना की थी । (१) भाट्टकौस्तुभ ( मीमांसा सूत्र की विस्तृत टीका), (२) भाट्टदीपिका (अधिकरण प्रस्थान के उपर निर्मित मौलिक ग्रंथ इस ग्रंथ के उपर प्रभावली, भाट्टचन्द्रिका और भाट्टचिंतामणी ये तीन टीका ये उपलब्ध होती है ।) (३) भाट्ट रहस्य ( शाब्दबोध विषयक यह ग्रंथ व्युत्पत्तिवाद के समान हैं ।) उससे अतिरिक्त श्रीनारायण भट्ट के "मानमेयोदय", श्रीलौगाक्षी भास्कर के " अर्थसंग्रह", श्री शंकरभट्ट के "मीमांसा बालप्रकाश" और "विधिरसायणदूषण" श्री अन्नंभट्ट की 'सुबोधिनी' (तन्त्रवार्तिक की टीका) और राणकोज्जीवीनी (न्यायसुधा की व्याख्या), श्री कृष्ण - यज्वा की मीमांसा परिभाषा, श्रीआपदेव का मीमांसा न्यायप्रकाश आदि मीमांसा दर्शन के ग्रंथ हैं ।
गुरुमत के ग्रंथ-ग्रंथकार
गुरुमत के प्रवर्तक प्रभाकर मिश्र में 'शाबर भाष्य' के उपर दो टीका रची हैं । (१) बृहती टीका (दूसरा 'निबंधन' नाम हैं।) (२) लघ्वी टीका (दूसरा 'विवरण' नाम है ।) गुरुमत की स्थापना श्री शालिकनाथ ने अपनी तीन पंचिकाओं से की है । (१) ऋजुविमलापंचिका (बृहती टीका की व्याख्या), (२) दीपशिखा पंचिका (लघ्वी टीका की व्याख्या), (३) प्रकरण पंचिका (मौलिक प्रकरण ग्रंथ ) । श्री भवनाथ ने श्री शालिकनाथ के सिद्धांतो का स्पष्टीकरण करने के लिए "नय विवेक" नाम के ग्रंथ की रचना की थी । गुरुमत के अन्थग्रंथो में श्री नंदीश्वर रचित " प्रभाकर विजय" और श्रीरामानुजाचार्य रचित "तंत्र रहस्य" प्रसिद्ध 1
मिश्रमत के ग्रंथ
मुरारी मिश्र के ग्रंथ लुप्तप्राय: हैं । उनका त्रिपादी " नीतिनयन" नामका ग्रंथ कि जो मीमांसा सूत्रो के उपर रचा हुआ
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उत्तरमीमांसा (वेदांत ) दर्शन
प्रस्तुत ग्रंथ में वेदांत दर्शन का प्रतिपादन नहीं किया गया हैं। टीकाकार श्री ने मीमांसक दर्शन के प्रारंभ में आंशिक निरूपण किया हैं । इस ग्रंथ के भाग-१ में, परिशिष्ट-१ में वेदांत दर्शन की भिन्न-भिन्न शाखायें - संप्रदायों के प्रतिपाद्य विषयो का विस्तार से प्रतिपादन किया गया हैं ।
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वेदांत अर्थात् वेद का अंत भाग । वेदो के पूर्वभाग में यज्ञादि कर्मों के मंत्र है और उत्तर भाग में आत्मज्ञान के मंत्र है। उसको उपनिषद् मंत्र भी कहे जाते हैं । उपनिषद् मंत्रो की एकवाक्यता स्थापित करने के लिए रचे गये सिद्धांत वह ' "वेदांत दर्शन” हैं । श्रीबादरायण ऋषि का " ब्रह्मसूत्र " ग्रंथ वेदांत का मूल आधार हैं । ब्रह्मसूत्र के उपर अनेक भाष्यों की रचना भिन्न भिन्न आचार्यो ने की हैं । प्रत्येक आचार्य ने वेदांत को समझाने के लिए ब्रह्मसूत्र के उपर भाष्य रचकर अपना सिद्धांत प्रस्थापित किया हैं । उसकी माहिती नीचे बताये अनुसार हैं (१७८)
178. श्री बलदेव उपाध्याय कृत भारतीय दर्शन, पृ. २३७ में से संगृहित की है।
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