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षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप
इसके अलावा श्वेताम्बर सम्प्रदाय में श्री तपागच्छाधिराज पू.आ.श्री.वि. रामचन्द्रसूरिजी म. साम्राज्यवर्ती पू.आ.भ.श्री. वीरशेखरसूरिजी म. ने बहोत कर्मविषयक नूतन साहित्य की रचना की है ।
दार्शनिक ग्रंथकलाप : जैनदर्शन के श्री पूर्वाचार्य महर्षियों ने अनेक दार्शनिक ग्रंथो की भेट दर्शन जगत को दी है ।
(१) सम्मतितर्क, (२) प्रमाणनयतत्त्वालोक, (३) स्याद्वादमञ्जरी, (४) स्याद्वद रहस्य, (५) स्याद्वाद कल्पलता, (६) षड्दर्शन समुच्चय, (७) शास्त्रवार्ता समुच्चय, (८) जैनतर्क भाषा, (९) प्रमाणमीमांसा, आदि अनेक दार्शनिक ग्रंथो जैन साहित्य में उपलब्ध है । इसका परिचय पहले भूमिका में दिया ही है । आकर कोटी के ग्रंथ :
(१) पू.वाचक प्रवर श्री उमास्वातिजी म. कृत तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, (२) पू.आ.भ.श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणजी कत विशेष्यावश्यक भाष्य, (३) प्रवचनसारोद्धार, (४) लोकप्रकाश (भाग १-५) आदि अनेक ग्रंथो की आकर कोटी में गणना होती है । क्योंकि, वे प्रमेयबहुल ग्रंथ है । इसके अलावा जैनदर्शन में योग, अध्यात्म ध्यान, कथा, ज्योतिष, व्याकरण इत्यादि अनेक विषय के विपुल ग्रंथ उपलब्ध है । विस्तार भय से यहाँ उसका संग्रह नहीं करते है।
विशेष : निम्नोक्त ग्रंथो से जैनवाङ्मय की प्रचुरता का परिचय होगा । जिज्ञासु वर्ग को इसका अवलोकन करने का सुझाव है । (१) जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग १ से ६) (हिन्दी भाषा)
प्रकाशक : पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान (जैनाश्रम), हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी (२) जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास (भाग १ से ३), (गुर्जर भाषा)
प्रणेता : हीरालाल रसिकलाल कापडीया, प्रकाशक : आचार्य श्री ऊँकारसूरि ज्ञानमंदिर, सुरत (३) गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि राज्यों में ४०० से अधिक सक्रिय ज्ञानभंडारों में जैन साहित्य
के विपुल पुस्तक-प्रत उपलब्ध है। नोंध : जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग १ से ६) में जैनदर्शन के आगम एवं विविध विषयक प्रकरण ग्रंथों के रचयिता, रचना समय, विषयवस्तु इत्यादि का परिचय भी दिया है ।
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