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षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट- ४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप ५२. लोकतत्त्वनिर्णय, ५३. लोकबिन्दु, ५४. विंशति (विंशतिविंशिका), ५५. वीरस्तव, ५६. वीरांगदकथा, ५७. वेदबाह्यतानिराकरण, ५८. व्यवहारकल्प, ५९. शास्त्रवार्तासमुच्चय सटीक, ६०. श्रावकप्रज्ञप्तिवृत्ति, ६१. श्रावकधर्मतन्त्र, ६२. षड्दर्शनसमुच्चय, ६३. षोडशक, ६४. संकितपचासी ६५. संग्रहणीवृत्ति, ६६. संपचासित्तरी, ६७. संबोधसित्तरी, ६८. संबोधप्रकरण, ६९. संसारदावास्तुति, ७०. आत्मानुशासन, ७१. समराइचकहा, ७२. सर्वज्ञसिद्धिप्रकरण सटीक, ७३. स्याद्वादकुचोद्यपरिहार ।
पूर्वाक्त ग्रंथराशी में से अनेकान्त जयपताका, अनेकान्त प्रघट्टक, अनेकान्तवाद प्रवेश, न्यायप्रवेशसूत्र, न्यायविनिश्चय, न्यायावतारवृत्ति, शास्त्रवार्ता समुच्चय, षड्दर्शन समुच्चय आदि ग्रंथ दार्शनिक है । पूर्वोक्त ग्रंथों में जिनागमो का रहस्य अद्भूत शैली में प्रस्तुत किये है । जैनदर्शन के अनुयायी वर्ग को परम आदरणीय ह ग्रंथकलाप है ।
जैनदर्शन के कार्मग्रंथिक साहित्य : जैनदर्शन के श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय में विपुल मात्रा में कार्मग्रंथिक साहित्य उपलब्ध है । श्वेताम्बरीय कर्म साहित्य सूची में निम्न ग्रंथो का समावेश होता है ।
(१) कर्म प्रकृति : श्री शिवशर्मसूरिजी म. विरचित ४७६ गाथा प्रमाण इस ग्रंथ के उपर ७००० श्लोक प्रमाण चूर्णि, १९२० श्लोक प्रमाण श्री मुनिचन्द्रसूरिजी कृत चूर्णि टिप्पण, ८००० श्लोक प्रमाण श्री मलयगिरिजी म. कृत वृति है । (२) पञ्चसंग्रह : श्री चन्द्रर्षिमहत्तरजी कृत ९६३ गाथा प्रमाण इस ग्रंथ के उपर ९००० श्लोक प्रमाण स्वोपज्ञवृत्ति, श्री मलयगिरिसूरिजी कृत १८८५० श्लोक प्रमाण बृहद्वृत्ति एवं श्री वामदेवजी कृत २५०० श्लोक प्रमाण दीपकवृत्ति है । (३) प्राचीन षट्कर्मग्रंथ : (१) कर्मविपाक : श्री गर्गर्षिजी विरचित १६८ श्लोक प्रमाण स ग्रंथ के उपर श्री परमान्दसूरिजी कृत वृति, अज्ञातकर्तृक १००० श्लोक प्रमाण व्याख्या एवं श्री उदयप्रभसूरिकृत ४२० श्लोक प्रमाण टिप्पन । (२) कर्मस्तव नामक द्वितीय कर्मग्रंथ के दो भाष्य श्री गोविन्दाचार्य कृत वृत्ति एवं श्री उदयप्रभसूरिजी कृत टिप्पन है । (३) बन्धस्वामित्व नामक तृतीय कर्मग्रंथ की श्री हरिभद्रसूरिजी कृत वृत्ति है । (४) षडशीति नामक चतुर्थ कर्मग्रंथ के उपर भाष्य-वृत्ति- अवचूरि के रूप में विस्तृत साहित्य है । (५) शतक नामक पंचम कर्मग्रंथ में भी विस्तृत साहित्य प्राप्त होता है । (६) सप्ततिका नामक षष्ठ कर्मग्रंथ के उपर भाष्य चूर्णि - प्राकृतवृत्तिवृत्ति-भाष्यवृत्ति-टिप्पन-अवचूरि उपलब्ध है । (४) सार्द्धशतक : श्री जिनवल्लभगणीजी कृत १५० गाथा प्रमाण ग्रंथ के उपर ११० गाथा प्रमाण भाष्य, श्री मुनिचन्द्रसूरिजी कृत २२०० श्लोक प्रमाण चूर्णि, श्री धनेश्वरसूरिजी कृत ३७०० श्लोक प्रमाण वृत्ति, श्री चक्रेश्वरसूरिजी कृत प्रा. वृत्ति आदि साहित्य उपलब्ध है । (५) नवीन पंच कर्मग्रंथः ३०४ गाथा प्रमाण श्री देवेन्द्रसूरिजी के इस ग्रंथ उपर १९०९३१ श्लोक प्रमाण स्वोपज्ञवृत्ति है । श्री मुनिशेखरसूरिजी ने २९५८ श्लोक प्रमाण अवचूरि एवं श्री गुणरत्नसूरिजी (प्रस्तुत ग्रंथ के टीकाकार) ने ५४०७ श्लोक प्रमाण अवचूरि की रचना की है । तदुपरांत श्री जयसोमसूरिजी कृत १७००० श्लोक प्रमाण षट्कर्मग्रंथ - बालावबोध, श्री मतिचन्द्रसूरिजी कृत १२००० श्लोक प्रमाण वृत्ति, श्री जीवविजयजी कृत १०००० श्लोक प्रमाण वृत्ति है । इस के अलावा (६) श्री महेन्द्रसूरिजी कृत मनः स्थिरीकरण प्रकरण (स्वोपज्ञवृत्ति सहित ) (७) श्री जयतिलकसूरिजी कृत संस्कृत (चार) कर्मग्रंथ, (८) कर्मप्रकृतिद्वात्रिंशिका, (९) श्री विजयविमलगणी कृत भाव प्रकरण (स्वोपज्ञ वृत्ति सह), (१०) श्री हर्षकुलगणिजी कृत बन्धहेतूदयत्रिभङ्गी ( वृत्तिसह ), (११) श्री विमलविजयगणी बन्धोदयसत्ता प्रकरण (स्वोपज्ञ अवचूरि), (१२) श्री देवचन्द्रसूरिजी कृत कर्मसंवेधभङ्ग प्रकरण, (१३) श्रीलक्ष्मीविजयजी कृत भूयस्कारादिविचार प्रकरण, (१४) श्री प्रेमसूरिजी म. कृत संक्रमकरण ।
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