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षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप उसके पूर्व भव की बात बताई है । उपरांत सूर्य, शुक्र, बहु पूत्रिका देवी आदि नव व्यक्तियों को पूर्वजन्म की कहानी के साथ माहिती दी हैं। __११ श्री पुष्पचूलिका सूत्र (२२) : यह आगम श्रीविपाक सूत्र का उपांग है । उसमें आत्मकल्याण के मार्ग के उपर स्वच्छंद तरीके से चलनेवाले की कैसी दुर्दशा होती है, उसका बहोत सुंदर चितार बताया है । इस विषय को लगती श्री, ही, धृति आदि १० देवीयों के पूर्वजन्म की रोचक कहानी मार्मिक रुप से बताई है । उपरांत ये १० देवीयाँ पूर्वजन्म में प्रभु पार्श्वनाथ की शिष्याये थी । संयम में शिथील बनकर किस तरह से कर्तव्यभ्रष्ट बनी, इत्यादि हकीकत व्यवस्थित रुप से बताई हैं ।
१२ श्री वृष्णिदशा सूत्र (२३) : यह आगम श्री दृष्टिवाद के उपांग के रूप में हैं । उसमें वृष्णिवंश के और वासुदेव कृष्ण के ज्येष्ठबंधु बलदेव के निषध आदि १२ पुत्रो ने अखंड ब्रह्मचारी बनकर प्रभु नेमिनाथ के पास से दीक्षा का स्वीकार करके सर्वार्थ सिद्ध नाम के श्रेष्ठ देवलोक में किस तरह से उपजे ? इत्यादि हकीकत सुंदर शब्दो में बताई हैं ।
८ से १२ उपांगो का संक्षिप्त परिचय : निरयावलिका में १० अध्ययन है । कल्पावतंसिका में १० अध्ययन है। पुष्पिका में १० अध्ययन है । पुष्पचूलिका में १० अध्ययन है । वृष्णिदशा में १२ अध्ययन हैं । टीका ७०० श्लोक प्रमाण हैं । उस ग्रंथ के मूल सूत्र ११०९ श्लोक प्रमाण हैं । प्रकीर्णक सूत्रो की माहिती -
प्र. १. श्री चतुःशरण प्रकीर्णक (२४) : इस प्रकीर्णक में आराधक भाव को बढाने के लिए चार शरण की महत्ता, पापगर्दा और सुकृत की अनुमोदना बहोत मार्मिक रुप से बताई है । प्रासंगिक छ: आवश्यको का संक्षिप्त स्वरूप और फल तथा १४ स्वप्न के नाम की भी बात सोची गई हैं ।
(१) पू.आ.भ. श्री भुवनतुंगसूरिजी विरचित ८०० श्लोक प्रमाण अवचूरि । इस प्रकीर्णक में मूल ८० श्लोक प्रमाण हैं ।
प्र. २. श्री आतुरप्रत्याख्यान (२५) : रोगशय्या पर पडे हुए को अंत समय की आराधना के बारे में धार्मिक बातो के विवेचन के साथ पंडित मरण की हकीकत बहोत ही स्पष्टता से सोची गई हैं । प्रासंगिक ६३ प्रकार के दुर्ध्यान, बालमरण की अनिष्टता, वैराग्य-संवेग भाव की विशिष्टता, आराधना की मार्मिकता आदि बाते भी हैं । श्री भुवनतुंगसूरिजी विरचित ४२० श्लोक प्रमाण टीका तथा इस प्रकीर्णक में मूल ८० श्लोक प्रमाण हैं ।
प्र. ३ श्री प्रत्याख्यान प्रकीर्णक (२६) : इसमें दुष्ट चरित्र की निंदा, माया का त्याग, पंडित मरण की अभिलाषाप्रशंसा, पौद्गलिक आहार की अतृप्ति, पाँच महाव्रतो का पालन आदि बाते बताई है । मूल श्लोक-१७६ है ।
प्र. ४ श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक (२७) : इसमें चार आहार का त्याग करके अनशन की पूर्व तैयारी बताई है । साथ में भक्त परिज्ञा के प्रकार, अनशन के लिए योग्यता आदि का विवेचन है । इसमें प्रसंग से चाणक्य मंत्री की समाधिपूर्वक अंतिम आराधना और सुबंधुने की हुई दुर्दशा का समभाव से सहन करना आदि की बात सुंदर पद्धति से बताई है । मूल श्लोक-२१५ इसके उपर पू.आ. गुणरत्नसूरि म. की अवचूरि हैं । ___ प्र. ५ श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक (२८) : इसमें वैराग्य भाव को दृढ करनेवाली बहोत बाते सोची गई हैं । गर्भावस्था, आयुष्य की १० दशा, १०० वर्ष के आयु में कितना खाने-पीने पर भी तृप्ति न हुई उसका अंक, संघयण, संस्थान का स्वरूप, शरीर और स्त्री के साहजिक अशुचि भाव का रोमांचक वर्णन आदि बाते है । मूल श्लोक ५०० है। प.श्री विजयविमलगणी की टीका भी है।
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