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षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट- ४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप
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५. श्री सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र (१६) : यह आगम श्री भगवती सूत्र के उपांग के रुप में हैं । यह आगम २० प्राभृत (आंतर विभाग) में बाँटा हुआ है । उसमें खगोल विद्या की महत्त्व की बाते भरपूर है। चंद्र, ग्रह, नक्षत्र आदि की गति के वर्णन के साथ मुख्यतः सूर्य की गति, उत्तरायण, दक्षिणायन आदि के बारे में बहोत सूक्ष्मता से भरे निश्चित गणित सूत्र है | प्रासंगिक में यह बाते महत्त्वपूर्ण है सूर्य की गति, चंद्र की गति, सूर्य की प्रकाश व्यवस्था, चंद्र का नक्षत्र के साथ संबंध, सूर्याचारक पुद्गल, ८८ ग्रहो के नाम, सूर्य की संख्या, जंबुद्वीप नक्षत्र, ग्रह की संख्या, सूर्य की ऊँचाई, पौरुषी छाया का माप और चंद्रकाल की हानि - वृद्धि ।
परिचय : १५०० श्लोक प्रमाण वृत्ति, इस ग्रंथ के मूल सूत्र २२९६ श्लोक प्रमाण । इसके उपर श्री भद्रबाहुस्वामीजी कृत निर्युक्ति थी । परन्तु हाल में उपलब्ध नहीं है । पू. आ. मलयगिरिसूरिजी ने टीका के प्रारंभ में प्रभु महावीर स्वामी के अंगोपांग का सुंदर वर्णन किया हैं ।
६. श्रीजंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (१७) : श्री ज्ञाताधर्मकथा के उपांग के रूप में यह आगम हैं । मुख्यतः यह जैन भूगोल का ग्रंथ है ।
- प्रासंगिक नीचे की बाते हैं : श्री ऋषभदेव का चारित्र । श्री तीर्थकरो का जन्माभिषेक । श्री भरतचक्रवर्ती का चरित्र । १५ कुलकर । कालचक्र का स्वरूप । जंबुद्वीप के शाश्वत पदार्थ आदि । नवनिधि का स्वरूप ।
परिचय : (१) १८७९ श्लोक प्रमाण चूर्णि, (२) श्री शांतिचंद्र वाचक की १८००० श्लोक प्रमाण वृत्ति ( ३ ) श्री धर्मसागरजी म. कृत १८३५२ श्लोक प्रमाण वृत्ति, (४) खतर गच्छीय श्री पुण्यसागरजी म. रचित १३२७५ श्लोक प्रमाण वृत्ति, (५) श्री ब्रह्मर्षि गणि कृत १५०० श्लोक प्रमाण वृत्ति । इस ग्रंथ के मूल सूत्र ४४५६ श्लोक प्रमाण है । इस आगम के उपर पू. आ. मलयगिरिजी सू. महाराज की टीका थी । परन्तु हाल उपलब्ध नहीं है ।
७. श्री चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र (१८) : यह आगम श्री उपासक दशांग सूत्र का उपांग हैं । जैन खगोल संबंधी का वर्णन हैं। इस आगम में वर्तमान काल में जो चंद्र हैं, वह पूर्व जन्म में कौन था ? क्या किया ? किस तरह से इस पदवी को पाया? इत्यादि रसिक बातो का भी प्रासंगिक वर्णन हैं ।
परिचय : (१) पू. आ. श्री मलयगिरिजी सू. म. विरचित ९५०० श्लोक प्रमाण टीका, (२) इस ग्रंथ के मूल सूत्र २२०० श्लोक प्रमाण है ।
८ श्री निरीयावलिका सूत्र (१९) : यह आगम अंतकृद् दशांग सूत्र का उपांग हैं । उसमें महाराजा श्रेणीक की काली, सुकाली आदि १० रानीयों के काल, सुकाल आदि १० पुत्रो को अपने पक्ष में लेकर महाराजा श्रेणिक चेडा महाराजा के सामने किये हुए भीषण संग्राम का विशद वर्णन हैं । जिसमें ९० करोड जनसंख्या खुवार हो गई । लगभग सभी नरकगति में गये । इस वर्णन को उपर से इस आगम का नाम नरक की आवली श्रेणी पडा है । इस आगम का दूसरा नाम कल्पिका भी हैं।
९ श्री कल्पावतंसिका सूत्र ( २० ) : यह आगम अनुत्तरोपपातिकदशांग का उपांग है । महाराजा श्रेणीक के काल आदि १० पुत्रो के (जिनका वर्णन निरियावलिका आगम में हैं ।) पद्म, महापद्म आदि १० राजकुमारोने प्रभु महावीर के चरणो में त्याग, तप और संयम की साधना करके देवलोक में गये, आदि बाते विस्तार से इस आगम में बताई गई हैं ।
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१० श्री पुष्पिका सूत्र (२१) : यह आगम श्री प्रश्न व्याकरण सूत्र के उपांग के रूप में हैं । उसमें चंद्र स्वयं विशाल परिवार और अद्भूत समृद्धि के साथ प्रभु महावीरदेव भगवंत को वंदनार्थ आने की हकीकत, ३२ नाटक करने की और
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