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________________ ५१० षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप वंदन करने की अपूर्व तैयारी । - प्रभु महावीर के शरीर का (समस्त आंगोपांग का) अद्भूत वर्णन । - अंबड तापस आदि के जीवन प्रसंग, केवली समुद्घात का सुंदर स्वरूप। - मोक्ष का रोमांचक वर्णन आदि । परिचय : इस आगम में ४३ सूत्र और २२५ पद्य है । १ से ३७ तक के सूत्र पूर्वार्धरूप से पहचाने जाते है । बाकी उतरार्ध कहा जाता है । पूर्वार्ध का नाम “समवसरण" है । पू.आ.भ. श्री अभयदेवसूरिजी रचित ३१२५ श्लोक प्रमाण टीका/मूल ११६७ श्लोक प्रमाण है। ___(२) श्री राजप्रश्नीय सूत्र (१३) : श्री सूत्रकृतांग सूत्र (श्रु-१, अध्य-१२) में बताये हुए क्रियावाद को लक्ष में रखकर इस आगम की संकलना हैं । इसलिए सूत्रकृतांग का उपांग हैं । इसमें मुख्यतः सूरियाभदेव और प्रदेशी राजा की विस्तार से रसिक हकीकत बताई हैं । प्रासंगिक नीचे की बाते भी हैं - देवताइ ३२ नाटको का संदर परिचयात्मक वर्णन। - प्राचीन विविध संगीत वाद्यो के प्रकारो का वर्णन । संगीतशास्त्र, नाट्यशास्त्रादि की सुंदर माहिती । नास्तिकवाद के गूढ प्रश्नो का तार्किक निराकरण । सिद्धायतन की १०८ जिनप्रतिमा का वर्णन आदि । परिचय : इस आगम मे ८५ सूत्र है । दो विभाग (समजने के लिए) है । प्रथम विभाग सूरियाभ चरित्र, दूसरा प्रदेशी चरित्र है । टीका ३७०० श्लोक प्रमाण, मूल २१२० श्लोक प्रमाण । इस सूत्र की टीका में पू.आ.श्री मलयगिरिसूरि महाराजने प्रासंगिक तरह तरह के उत्सव, चातुर्मासिक धर्म, चार प्रकार की पर्षदा और चार प्रकार के व्यवहार आदि का सुंदर वर्णन किया हैं । ३ श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र (१४) : यह आगम स्थानांग सूत्र का उपांग हैं । उसमें मुख्यत: जीव-अजीव संबंधी विशद विवेचन हैं । इस आगम की शैली प्रश्नोत्तर रूप में हैं । प्रारंभ में अजीव-जड पदार्थ की विस्तार से माहिती दी हैं । बाद में २ से १० तक जीव के विविध भेद बताये है। प्रासंगिक रुप से द्वीप-समुद्रो का अधिकार, विजयदेव का अधिकार बहोत ही रसप्रद हैं । परिचय : इस आगम में ९ प्रतिपत्तियाँ विभाग है । कुल मिला के २७२ सूत्र है । (१) श्री पूर्वाचार्य कृत १५०० श्लोक प्रमाण चूर्णि, (२) श्री मलयगिरि सू. महाराज रचित १६००० श्लोक प्रमाण वृत्ति, (३) पू.आ.श्री हरिभद्रसूरिजी रचित १७९२ श्लोक प्रमाण लघुवृत्ति, (४) पू.आ.श्री.देवसूरिजी म. रचित १८०० श्लोक प्रमाण लघुवृत्ति । इस ग्रंथ के मूल सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण हैं। ४ श्री प्रज्ञापना सूत्र (१५) : यह आगम श्री समवायांग सूत्र का उपांग हैं । प्रश्नोत्तर शैली में है । इस आगम को लघु भगवती सूत्र कहते हैं । इसमें द्रव्यानुयोग और तात्त्विक बातो की सूक्ष्मता से विचारणा की हैं । जैन दर्शन के तात्त्विक पदार्थो का संक्षिप्त विश्वकोष जैसा यह आगम है । इसके ३६ विभाग है । जिसमें कर्मग्रंथ, परमाणुवाद, भाषा, शरीर, संयम और समुद्घात आदि महत्त्व की बाते बताई हैं । परिचय : इस आगम में ३४९ सूत्र हैं । (१) पू.आ.भ. श्री मलयगिरिसू. म. कृत १४५०० श्लोक प्रमाणवृत्ति । (२) पू.आ.भ.श्री हरिभद्रसूरिजी म. विरचित ३७२८ श्लोक प्रमाण लघुवृत्ति, (३) पू.आ.भ. श्री अभयदेवसूरिजी म. कृत १५० श्लोक प्रमाण तृतीयपद संग्रहणी । (४) पू.आ.भ. श्री कुलमंडनगणि विरचित ४३० श्लोक प्रमाण अवचूरि । इस ग्रंथ के मूलसूत्र ७७८७ श्लोक प्रमाण हैं । यह आगम तात्त्विक दृष्टि से बहोत ही महत्त्वपूर्ण हैं । इस आगम की व्यवस्थित संकलना युगप्रधान पू.आ.श्री.गुणाकरसूरि म. के शिष्य आचार्य श्री श्यामाचार्यजी ने (श्री कालकाचार्यजी ने) की हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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