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षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप
(८) श्री अंतकृद्दशांग सूत्र : इस आगम में प्रभु शासन को प्राप्त करके संसार का अंत करके केवलज्ञान प्राप्त करके तुरंत ही (अंतर्मुहूर्त में) मोक्ष में गये हो ऐसे महान पुण्यात्मा-आराधक मुनियों के आदर्श जीवन चरित्र है ।
इस में मुख्यत: वर्णन की गई बाते : (१) द्वारिका का वर्णन, (२) द्वारिका का नाश, (३) श्रीकृष्ण वासुदेव - अर्जुनमालि का अधिकार, (४) परिवार की संख्या, (५) अईमुत्ता मुनि का वर्णन, (६) शत्रुजयगिरि (सिद्धगिरि) का उल्लेख, (७) महाराजा श्रेणिक की २३ राणीओं की दीक्षा-तपस्या आदि का सुंदर वर्णन हैं ।
परिचय : इस आगम में दस वर्ग और उसके आंतर विभागरूप ९२ उद्देश हैं, ८५० श्लोक प्रमाण ग्रंथ है, पू.आ.भ.श्री अभयदेवसूरीश्वरजी कृत ४०० श्लोक प्रमाण टीका है।
(९) श्री अनुत्तरौपपातिकदशांग सूत्र : इस आगम में धर्म की आराधना के विशिष्ट प्रभाव से जगत के सर्वोत्तम देवलोक के सुख, अनुत्तर विमान में उत्पन्न होकर प्राप्त करनेवाले महात्माओं के जीवन चरित्र है ।
मुख्यतः वर्णन की गई बाते : (१) महाराजा श्रेणिक की पटराणी धारिणी के ७ पुत्र । (२) चेल्लणा महाराणी के दो पुत्र। (३) नंदा राणी के पुत्र का माहात्म्य । (४) श्री अभयकुमार की संयम साधना । (५) महातपस्वी धन्ना काकंदी महामुनि की कठोर तपस्या का रोमांचक वर्णन । (६) प्रकृष्ट पुण्यशाली महापुरुषो के रोमांचक जीवन प्रसंग ।
परिचय : इस आगम में ३३ अध्ययन हैं । आगम १९२ श्लोक प्रमाण, लघु टीका-१०० श्लोक प्रमाण । नवांगी टीकाकार पू.आ. अभयदेवसूरिजी ने इस आगम के उपर संक्षिप्त टीका बनाई हैं ।
(१०) श्री प्रश्न व्याकरण सूत्र : इस आगम में हिंसा, जूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह ये पांच महामापो का सविस्तार वर्णन तथा उसके सर्वथा त्यागरूप महाव्रतो का स्वरूप हाल में मिलता हैं । प्राचीन काल में इस आगम में अनेक विद्या मंत्र और अतिशयो की बाते थी । भवनपति आदि निकाय के देवो के साथ बात करने की पद्धति थी।
परिचय : इस आगम में मुख्यत: दो विभाग हैं । प्रत्येक में पांच आंतर विभाग है । अर्थात् कुल मिला के १० अध्ययन है । पू.आ.श्री. अभयदेवसूरि म. रचित ४६०२ श्लोक प्रमाण टीका तथा पू. श्री नयविमलगणी कृत ७५०० श्लोक प्रमाण टीका हैं।
(११) श्रीविपाक सूत्र : इस आगम में अज्ञानावस्था में बंधे हुए अशुभ कर्मो का भयंकर विपाक और शुभ प्रवृत्तिओं से बंधे हुए शुभ कर्मो के सुखद विपाक का सुंदर वर्णन है । जगप्रसिद्ध तत् तत् व्यक्तियों के सचोट उदाहरण देकर इन दोनों बात का समर्थन इस आगम में किया है । इस आगम में मृगापुत्र (कोढी) और महामुनि सुबाहु के आदर्श जीवन प्रसंग अद्भूत है।
परिचय : इस आगम में दो विभाग है । प्रत्येक के आतर विभागरूप से १०-१० अध्ययन हैं । कुल मिलाके २० अध्ययन हैं । पू.श्री. अभयदेवसूरिजी रचित टीका ९०० श्लोक प्रमाण तथा मल १२५० श्लोक प्रमाण है । १२ उपांग-सूत्रो की माहिती :
१. श्री औपपातिक सूत्र-(१२) : यह आगम श्री आचारांग सूत्र "अत्थि मे गाथा उवाइए" सूत्र की व्याख्यारूप उपांग है । इस आगम में नीचे अनुसार महत्त्व की बाते हैं । इस आगम का मुख्य विषय देव-नारकगति में जन्म और मोक्षगमन के अर्थवाले उपपात का हैं । प्रासंगिक नीचे की बाते भी हैं - अजात शत्रु महाराज श्रेणिक की प्रभु महावीर को
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