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________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट- ४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप बाद में १५०, २०० ऐसे ५०० तक, बाद में ६००, ७०० ऐसे ११०० तक, बाद में २०००, ३००० ऐसे १०००० तक के विविध पदार्थ बताये है । उसके बाद १ लाख, २ लाख ऐसे १० लाख तक, बाद में एक करोड आखिर में एक कोटाकोटी सागरोपम तक के पदार्थों का व्यवस्थित निर्देश हैं । अंत में, संपूर्ण द्वादशांगी (समस्त आगमो) का संक्षिप्त परिचय हैं। परिचय : इस आगम में १६० सूत्र हैं । उसका ग्रंथ प्रमाण १६६७ श्लोक का है । इस आगम के उपर नियुक्ति, चूर्णि या भाष्य नहीं है । तथा श्री अभयदेवसूरिजी रचित ३५७५ श्लोक प्रमाण बृहद्वृत्ति हैं । 1 ५०८ (५) श्री भगवती सूत्र : इस आगम में जगत के भिन्न भिन्न पदार्थो का विशिष्ट शैली से पृथक्करण, विवेचन, भांगे आदि रूप से वर्णन है । प्रथम गणधर भगवंत श्री गौतमस्वामीजी महाराजने पूछे हुए ३६००० प्रश्नो के सुंदर समाधानो का संकलन इस आगम में हैं । इसके सिवा अग्निभूति, वायुभूति, मंडितपुत्र, माकंदीपुत्र, रोहक, जयंती श्राविका और कुछ अजैन व्यक्तिओं ने भी विविध प्रश्न पूछे हैं । परिचय : इस आगम में ४१ विभाग है । जिसे " शतक" कहा जाता है । उसके आंतर विभाग "उद्देशक" कहे जाते हैं । ऐसे १००० उद्देशक है । इस आगम का मूल १५७५२ श्लोक प्रमाण हैं । (१) श्री अभयदेवसूरिजी कृत १८६१६ श्लोक प्रमाण बृहद्वृत्ति, (२) श्री पूर्वाचार्यकृत ३११४ श्लोक प्रमाण चूर्णि और २८०० श्लोक प्रमाण अवचूर्णि, (३) श्री मलयगिरिजी रचित ३७५० श्लोक प्रमाण द्वितीय शतकवृत्ति, (४) श्रीदानशेखरजी रचित १२९२० श्लोक प्रमाण लघुवृत्ति और ( ५ ) श्री हर्षकुलगणिजी रचित ४९० श्लोक प्रमाण बीजक (वृत्ति) । (६) श्री ज्ञाताधर्मकथा : इस आगम में महापुरुषो के जीवन की सत्य घटनायें और औपदेशिक कथानको का विपुल संग्रह है, जिससे बालजीव धर्म प्रति अनुरागवाले हो । प्राचीनकाल में इस आगम के लिए ऐसा उल्लेख है कि प्रथम श्रुतस्कंध के अंतिम नौ अध्ययन में से प्रत्येक में ५०० आख्यायिका, प्रत्येक आख्यायिका में ५०० उपाख्यायिका, प्रत्येक उपआख्यायिका में ५०० आख्यायिका, हैं । इस तरह से ९ x ५०० x ५०० x ५०० = १,२१,५०,००,००० (एक अरब एक्कीस करोड, पचास लाख कथायें ) इस तरह से दूसरे श्रुतस्कंध के प्रत्येक वर्ग में ५०० आख्यायिका, प्रत्येक आख्यायिका में ५०० उपाख्यायिकायें, प्रत्येक उपाख्या में ५०० आख्यायिक- प्राख्यायिकायें अर्थात् १,२५,००,००,००० ( १ अरब, पच्चीस करोड, कथायें ) थी। आज वे सभी उपलब्ध नहीं हैं । परिचय : इस आगम में दो विभाग है । प्रथम विभाग में कुछ रुपक- कल्पित दृष्टांतो से सन्मार्ग बताया है । द्वितीय विभाग में महापुरुषो के जीवन चरित्र है । इस आगम के रोचक दृष्टांत बालजीवो को धर्म मार्ग में स्थिर करनेवाले है । श्री अभयदेवसूरिजी कृत ३८०० श्लोक प्रमाण टीका है, इस ग्रंथ के मूल सूत्र ५४०० श्लोक प्रमाण है । (७) श्री उपासक दशांग सूत्र : इस आगम में प्रभु महावीर परमात्मा के शासन के दस महाश्रावको के जीवन संबंधित रोचक संक्षिप्त वर्णन है । इस आगम में प्रासंगिक “गोशालक" का नियतिवाद और प्रभु महावीर को दी हुई महामाहण, महागोप, महासार्थवाह, महाधर्मकथी और महानिर्यामक की यथार्थ उपमाओं का वर्णन आदि भी सुंदर तरीके से किया है । परिचय : इस आगम में १० अध्ययन है । कुल मिला के ५९ सूत्र है, जो ८१२ श्लोक प्रमाण है । उसके उपर ८०० श्लोक प्रमाण टीका है । इस आगम में श्रावको के जीवन को उन्नत बनानेवाले आदर्श जीवनसूत्रों का रोचक वर्णन पू. आ. अभयदेवसूरि महाराज ने टीका में किया है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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