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षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, परीशिष्ट - २, योगदर्शन
• योग के आठ अंग ) :- समाधि की साधना के लिए योग के आठ अंग सहायक बनते हैं । यम-नियम-आसन-प्राणायाम - प्रत्याहार-धारणा - ध्यान - समधि, ये आठ योगांग हैं।
(१)यम (२) : अहिंसा - सत्य - अचौर्य-ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पांच यम हैं । (२) नियम ( ३ ): शौचसंतोष-तप-स्वाध्याय - ईश्वरप्रणिधान ये पांच नियम हैं। मन-वचन-काया की पवित्रता को शौच कहा जाता हैं । किसी भी अवस्था में संप्राप्त वस्तु से अतिरिक्त वस्तु का लोभ न करना वह संतोष हैं। इच्छानिरोध वह तप हैं । (योगदर्शन अनुसार) “ओम् " प्रणव पूर्वक के मंत्र का जाप करना वह स्वाध्याय । अपने समस्त कार्य ईश्वर को अर्पण करना वह ईश्वर प्रणिधान । (३) आसन ( ४ ) यानी शरीर का संस्थान विशेष । ( ४ ) प्राणायाम ( ५ ) = श्वासप्रश्वास की गति का विच्छेद करना । (५) प्रत्याहार ( ६ ) = इन्द्रिय निग्रह । स्वविषय के प्रयोग काल में भी चित्तवृत्ति का स्वरूप में अनुसरण होना, वही प्रत्याहार हैं । ( ६ ) धारणा ( ७ ) = पदार्थ के जिस देश में (मस्तक इत्यादि) ध्येय का चिंतन करना हो वहाँ चित्त को स्थिर करना । ( ७ ) ध्यान ( ( ) = ध्येय में चित्त की एकाग्रता | (८) समाधि (९) = ध्यान में जब ध्याता- ध्येय-ध्यान का भेद विलीन हो जाये, वह अवस्था समाधि हैं। यमनियम- आसन-प्राणायाम और प्रत्याहार से देह - इन्द्रिय और प्राण का निग्रह होता हैं । धारणा-ध्यानसमाधि से चित्त का निग्रह होता हैं। धारणा-ध्यान-समाधि की एकत्र प्रवृत्ति को "संयम" कहते हैं। संयम से अनेकविध सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। और निरोध होने से गुण पुरुषार्थशून्य बनकर अपने-अपने कारण में विलीन हो जाते हैं। फलस्वरुप से पुरुष स्वरुप में प्रतिष्ठित बनकर कैवल्य प्राप्त करता हैं। यही बात करके पातंजलयोग सूत्र की समाप्ति होती हैं...
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'पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसवः कैवल्यं स्वरुप - प्रतिष्ठा वा चितिशक्तिरिति" ॥४-३४॥ पुरुषार्थ से शून्य सत्त्वादिगुणो का या बुद्धिसत्त्वरुप गुणो का स्वकरण में लय होता हैं, वही कैवल्य है । अथवा चितिशक्तिरुप पुरुष का स्वरुप में जो अवस्थान होता हैं, वही कैवल्य हैं। (प्रतिप्रसव = स्वकारण में आत्यंतिक लय)
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प्रमाणविचार: योगदर्शन, सांख्यदर्शन की तरह तीन प्रमाण को मानते हैं ।
प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि ॥१-७॥ ( योगसूत्र )
सूत्रार्थ :- प्रमाणवृत्ति प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम ये तीन प्रकार की हैं। तीनों प्रमाण का स्वरुप सांख्यदर्शन में दिये हैं। उस अनुसार से जानें।
(१) यमनियमासनप्राणायमप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि ॥२- २९ ॥ ( पां.यो.सू.) (२) तत्राहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः ॥२- ३०|| ( पां.यो.सू.) (३) शौचसंतोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः || २ - ३२|| ( ४ ) स्थिर सुखासनम् ॥ २४६ ॥ (५) तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायमः || २- ४९ ।। (६) स्वविषयसंप्रयोगे वित्तस्य स्वरुपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहारः || २ - ५४ ॥ ( ७ ) देशबन्धश्चित्तस्य धारणा ॥ ३ - १ || ( ८ ) प्रत्ययैकतानता ध्यानम् ॥३-२॥ (९) तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरुपशून्यमिव समाधिः ॥ ३-३ ॥ (पां.यो.सूत्र)
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